सुनो कन्हैया
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
(तंत्री छंद)
सुनो कन्हैया, जगत रचैया,
कब मेरे, घर तुम आओगे।
राह निहारे, नैन हमारे,
बोलो कब, दरस दिखाओगे॥
देखो कान्हा, जल्दी आना,
माखन का, भोग लगाऊँगी।
हे मधुसूदन, करूँ मैं वंदन,
चरणों में, शीश नवाऊँगी॥
कहते हैं सब, तुमको केशव,
सबके दुःख, को तुम हरते हो।
हे दुखहर्ता, मंगलकर्ता,
दुष्टों का, वध तुम करते हो॥
मेरा वंदन, सुनो जनार्दन,
एकबार, प्रभु तुम आ जाओ।
मुझको कान्हा, मत बिसराना,
युग्मितछवि, कृष्ण दिखा जाओ॥
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