कर्मयोगी

01-10-2022

कर्मयोगी

कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति' (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

जीवन में कुछ करना है तो, 
मन को मारे मत बैठो। 
बनकर दीन–हीन ऐ बंदे, 
हाथ पसारे मत बैठो। 
 
माना अगम अगाध सिंधु है, 
हार किनारे मत बैठो। 
छोड़ शिथिलता बढ़ जा आगे, 
आस लगाये मत बैठो। 
 
पाओगे मंज़िल को प्यारे, 
हिम्मत हारे मत बैठो। 
कूद पड़ो अब अंगारों में, 
समय गँवाये मत बैठो। 
 
राहें कितनी भी मुश्किल हों, 
पंगत बन तुम मत बैठो। 
करो विश्वास कर्म पर बंदे, 
भाग्य भरोसे मत बैठो। 
 
कर्मयोगी बन जा ऐ बंदे, 
नज़र चुराए मत बैठो। 
होंगी ख़ुशियाँ तेरे हिस्से, 
होश गँवाये मत बैठो। 

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