असली कमाई
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'(छः साल पूर्व की घटना: एक सुखद अहसास)
भीषण शीतलहर की सुबह। हालाँकि तक़रीबन 8:45 का समय हो रहा था, मैं अपने पति के साथ बाइक से विद्यालय जाने के लिए निकल चुकी थी। कुहासा इतना घना था कि थोड़ी दूर की चीज़ें भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहीं थीं। सिर से पैर तक ऊनी कपड़ों में ख़ुद को ढकी विद्यालय की ओर धीरे-धीरे बढ़े जा रही थी तभी अचानक से एक कुत्ता बाइक के सामने से गुज़रा जिससे बाइक का संतुलन बिगड़ गया। हालाँकि वह कुत्ता भगवान की कृपा से बच निकला लेकिन बाइक सहित हम दोनों सड़क पर गिर पड़े। गिरने से मुझे तो कोई ख़ास चोट नहीं लगी लेकिन मेरे पतिदेव थोड़ा घायल हो चुके थे। स्थानीय लोगों ने दौड़कर हमारी मदद की और मेरे पतिदेव का प्राथमिक उपचार भी किया। ज़ख़्म ज़्यादा गहरा नहीं था लेकिन घबराहट काफ़ी हो रही थी। 10-15 मिनट बाद थोड़ा स्थिर हुई तो लगा कि विद्यालय में ख़बर कर देती हूँ क्योंकि विद्यालय का समय हो चुका था। विद्यालय में बच्चे चेतनासत्र के लिए मैदान में इकट्ठे थे तभी मेरा फ़ोन प्रभारी प्रधानाध्यापिका के मोबाइल पर गया। चूँकि सारे छात्र/छात्राएँ व शिक्षकगण चेतनासत्र के लिए मैदान में खड़े थे। मेरी बात सुनकर प्रधानाध्यापिका ज़ोर से बोल पड़ी, “कुमकुम मैडम का एक्सीडेंट हो गया है।” उनकी इस बात को सारे बच्चों ने सुन लिया। कुछ ही देर में विद्यालय के एक शिक्षक व शिक्षिका घटनास्थल पर पहुँच गए। हालाँकि तब तक मैं सामान्य हो गई थी लेकिन पतिदेव के दाएँ अंग में जगह-जगह चोट लगी थी। सभी लोग हम दोनों को घर जाकर आराम करने की सलाह दे रहे थे लेकिन मेरे पतिदेव का दफ़्तर जाना ज़रूरी था क्योंकि दफ़्तर की चाभी इनके पास थी। वे बोले तुम घर चली जाओ मैं ऑफ़िस जाऊँगा क्योंकि मेरा ऑफ़िस जाना बहुत ज़रूरी है तो मैं उनसे बोली जब आप ऑफ़िस जा रहे हैं तो मैं भी विद्यालय चली जाती हूँ, विद्यालय में बच्चों के बीच अच्छा महसूस होगा। फिर ये एक सज्जन की सहायता से ऑफ़िस चले गए और मैं ऑटो रिक्शा से विद्यालय आ गई। विद्यालय के सारे बच्चे वर्गकक्ष में जा चुके थे। शिक्षक/शिक्षिका भी अपने-अपने वर्गकक्ष में थी। मेरे विद्यालय में चाहरदीवारी नहीं है। जैसे ही ऑटो विद्यालय के सामने सड़क पर रुका और मैं ऑटो से उतरी तो वर्गकक्ष में बैठे कुछ बच्चों ने मुझे देख लिया। फिर क्या था बच्चे वर्गकक्ष से निकलकर मेरी ओर दौड़ पड़े और पूछने लगे मैडम आप कैसी हैं? कुछ बच्चे तो मुझसे ऐसे लिपट गए मानो उनकी उम्मीद टूटने से बच गई हो। तब मैंने उन्हें समझा-बुझाकर वर्गकक्ष में भेज दिया और ख़ुद प्रधानाध्यापक कक्ष में आ गई जहाँ हमारी प्रभारी प्रधानाध्यापिका उपस्थित थी। वो भी मुझे सही सलामत देखकर काफ़ी ख़ुश हुई और मुझसे एक सवाल पूछ बैठी, “आप बच्चों को क्या देती हैं, जो सारे बच्चे आपके लिए जान देते हैं?”
उन्होंने बताया कि जैसे ही हमारे एक्सीडेंट का ख़बर को बच्चों ने सुना तो वे पूछने लगे हमारी मैडम कैसी हैं, किस अस्पताल में हैं? हमें बताइए हम लोग उनको देखने जाएँगे। मैडम को कुछ नहीं होना चाहिए कुछ बच्चों ने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं मैडम को अपना ख़ून भी दूँगा। उन्होंने बताया कि बड़ी मुश्किल से बच्चों को विद्यालय में रोक कर रखा है। उनकी बात सुनकर मैं ख़ुद को धन्य समझ रही थी क्योंकि असली कमाई तो यही है।
1 टिप्पणियाँ
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Bahut sundar story.. Wakai bacche teacher ke saath bachpan mei involved rehte h unka kehna hi sach mante h.unki bahut respect karte h... Congratulations for the story.
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