कर्मनिष्ठ 

01-06-2023

कर्मनिष्ठ 

कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति' (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

जिन्हें विश्वास हो ख़ुद पर, सदा आगे वो बढ़ जाते। 
करते कर्म की पूजा, कर्मयोगी वो कहलाते। 
नहीं करते शिकवा वो, नहीं कोसते हैं नियति को। 
बनाकर राह पर्वत में, दशरथ माँझी बन जाते। 
 
रखते नहीं आसरा वो, अकेले वृद्धि को पाते। 
अपने ही बलबूते ये, सितारें ज़मीं पर लाते। 
देख इनकी तरंगें, फ़रिश्तों को आना होता है। 
अपने कर्म से अपनी, अलग पहचान ये बनाते॥
 
ऐसे ही लोगों के मुट्ठी में, भाग्य होता है। 
कर्महीन होते हैं वो जो, क़िस्मत को रोता है। 
हम सब में ईश्वर ने, भरा है बराबर ऊर्जा को। 
काटता है हर मानुष, वही जो वह बोता है॥
 
अँधेरे से आकुलाकर, दिवाकर कब सोता है। 
नई ऊर्जा संग लेकर, सवेरे नित्य उदय होता है। 
मिलेगा ना फिर से तुझे, दुबारा जन्म ऐ प्यारे। 
क्यों व्यर्थ बातों में, अमूल्य जीवन को खोता है॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
सामाजिक आलेख
किशोर साहित्य कहानी
बच्चों के मुख से
चिन्तन
आप-बीती
सांस्कृतिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
चम्पू-काव्य
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में