अभिलाषा
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
मंदाक्रांता छंद
हे वागीशा, हृदय तल से, तुझे माँ मैं बुलाऊँ।
आ जाना माँ, सुन विनय को, आस तेरे लगाऊँ।
है ये वांछा, चरण रज को, भाल पे माँ लगाऊँ।
देना माता, शुभवचन ये, गीत तेरे रचाऊँ।
है आकांक्षा, बस क़लम से, माँ बहे ज्ञान धारा।
माँ वाग्देवी, अनवरत तू, साथ देना हमारा।
ब्राह्मी देवी, जगत जननी, दो मुझे माँ सहारा।
हंसारूढ़ा, विनय तुमसे, दीप्त हो ज्ञान सारा
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अब ये क़दम ना पीछे हटेंगे
- अभिलाषा
- आओ मतदान करें
- आदिशक्ति मात भवानी
- आयो कृष्ण कन्हाई
- करना होगा कर्म महान
- कर्मनिष्ठ
- कर्मयोगी
- किस आस में तू खड़ा
- कृष्ण भजन
- चले वसंती बयार
- धरती की पुकार
- नव निर्माण
- नव संवत्सर
- नवदुर्गा
- पुरुष
- प्रीत जहाँ की रीत
- बेटी धन अनमोल
- माता वीणापाणि
- मेरी क़लम
- मोहन प्यारा
- युगपुरुष
- राम भजन
- शिक्षक
- श्रीहरि
- हमारा बिहार
- होली
- ख़ुद को दीप्तिमान कर
- ज़रा रुक
- गीत-नवगीत
- सामाजिक आलेख
- किशोर साहित्य कहानी
- बच्चों के मुख से
- चिन्तन
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- किशोर साहित्य कविता
- चम्पू-काव्य
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-