अभिलाषा
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
मंदाक्रांता छंद
हे वागीशा, हृदय तल से, तुझे माँ मैं बुलाऊँ।
आ जाना माँ, सुन विनय को, आस तेरे लगाऊँ।
है ये वांछा, चरण रज को, भाल पे माँ लगाऊँ।
देना माता, शुभवचन ये, गीत तेरे रचाऊँ।
है आकांक्षा, बस क़लम से, माँ बहे ज्ञान धारा।
माँ वाग्देवी, अनवरत तू, साथ देना हमारा।
ब्राह्मी देवी, जगत जननी, दो मुझे माँ सहारा।
हंसारूढ़ा, विनय तुमसे, दीप्त हो ज्ञान सारा
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