रामलला
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
(दोधक छंद)
गणावली: 211 211 211 22
है अति बेकल नैन हमारे।
दर्शन को प्रभु राम तुम्हारे॥
देकर दर्शन काज सँवारो।
नाथ हमें भव से अब तारो॥
थाल सजाकर मैं प्रभु आई।
पूजन पूर्ण करो रघुराई॥
हाथ बढ़ाकर आशिष दीजो।
हे हरि पूर्ण मनोरथ कीजो॥
हूँ कब से प्रभु हाथ पसारे।
आप बिना प्रभु कौन हमारे॥
हे प्रभु देर नहीं अब कीजो।
दर्शन राम मुझे अब दीजो॥
हे रघुनंदन कष्ट निवारो।
दर्शन देकर प्राण सँवारो॥
है अति सुंदर रूप तुम्हारा।
मोह लिया जिसने जग सारा॥
राम लला प्रभु दर्शन दीजो।
हे रघुनाथ कृपा अब कीजो॥
देख मनोहर रूप तुम्हारे।
हर्षित हैं प्रभु नैन हमारे॥
देव हमें अब पार उतारो।
नाथ कृपा कर कष्ट निवारो॥
आप बिना प्रभु कौन हमारे।
हाथ पसार खड़े हम द्वारे॥
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