बेटी धन अनमोल
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'मेरे जन्म से पापा क्यों डरते हो, 
मुख अपना मलिन क्यों करते हो? 
बेटी हूँ कोई अभिशाप नहीं, 
फिर मन को बोझिल क्यों करते हो? 
 
इस बात को पापा भूल जाते हो, 
और क्यों मुझे पराया बताते हो? 
मैं भी तेरे बाग़ों की कलियाँ, 
फिर क्यों नहीं प्यार लुटाते हो? 
 
देखो-देखो पापा देखो इधर, 
मत नज़रें फेरो इधर-उधर। 
उस राह से काँटा मैं चुन लूँगी, 
तुम जाओगे पापा जिधर-जिधर। 
 
बिटिया मेरी न ऐसी बातें कर, 
सुनकर पापा जाएँगे बिखर। 
तेरे आने से बिटिया मेरी, 
घर-अँगना गया सँवर-सँवर। 
 
बिटिया तू तो मेरी शान है, 
इस घर की तू अभिमान है। 
ख़ूब पढ़ाऊँ, तुझे ख़ूब लिखाऊँ, 
बस दिल में यही अरमान है। 
 
पिता होने का फ़र्ज़ मैं निभाऊँगा, 
स्नेह का पुष्प तुझपे लुटाऊँगा। 
बेटी-बेटा से कुछ कम नहीं, 
दुनियाँ को मैं यह बतलाऊँगा। 
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