किस आस में तू खड़ा
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'पूछता यह व्योम है,
पूछती है धरा।
आक़िर किस चमत्कार के,
है ताक में तू खड़ा।
यूँ ही नहीं किसी को,
मिलता यहाँ सम्मान।
करना पड़ता है उसे,
नित-नवीन कर्म महान।
क़िस्मत को मत कोसना,
रखना कर्म पर ध्यान।
अमरत्व उसने पाया है,
जिसने लिया है ठान।
देख ज़रा तू देख उन्हें,
पहुँचे हैं जो शिखर।
जिनके कठिन प्रहार से,
पर्वत गया बिखर।
आलस्य को त्यागकर,
कर ख़ुद पर अभिमान।
आगे-आगे बढ़ता चल,
बन ख़ुद की तू पहचान।
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