श्रीकृष्ण

01-07-2022

श्रीकृष्ण

कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति' (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

 (मनहरण घनाक्षरी) 

1. 
हे कान्हा सुनो पुकार, हम आए तेरे द्वार, 
विनती करो स्वीकार, भव पार कीजिए। 
दे दो आशीष अपार, हो प्यारा यह संसार, 
तुम हो प्राण आधार, हमें ज्ञान दीजिए। 
लेकर पूजा का थाल, मैं पूजा करूँ गोपाल, 
मैय्या यशोदा के लाल, प्रभु ध्यान दीजिए। 
तुझमें तेज अपार, तुम सृष्टि के आधार, 
मैं हूँ निपट गँवार, शरण में लीजिए। 
 
2.
सृष्टि को तूने रचाया, तुझसे ही जन्म पाया, 
फिर अंत में समाया, श्री उद्धार कीजिए। 
घट-घट के हो वासी, क्या मथुरा क्या है काशी, 
अँखियाँ मेरी हैं प्यासी, दर्शन तो दीजिए। 
नंदबाबा के दुलारे, जन-जन के हो प्यारे, 
बन सबके सहारे, उपकार कीजिए। 
जो राधा तुझे बुलाए, तुम दौड़े-दौड़े आए, 
हम नैन हैं बिछाए, दर्शन तो दीजिए। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
ललित निबन्ध
दोहे
गीत-नवगीत
सामाजिक आलेख
किशोर साहित्य कहानी
बच्चों के मुख से
चिन्तन
आप-बीती
सांस्कृतिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
चम्पू-काव्य
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में