श्रीकृष्ण
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'(मनहरण घनाक्षरी)
1.
हे कान्हा सुनो पुकार, हम आए तेरे द्वार,
विनती करो स्वीकार, भव पार कीजिए।
दे दो आशीष अपार, हो प्यारा यह संसार,
तुम हो प्राण आधार, हमें ज्ञान दीजिए।
लेकर पूजा का थाल, मैं पूजा करूँ गोपाल,
मैय्या यशोदा के लाल, प्रभु ध्यान दीजिए।
तुझमें तेज अपार, तुम सृष्टि के आधार,
मैं हूँ निपट गँवार, शरण में लीजिए।
2.
सृष्टि को तूने रचाया, तुझसे ही जन्म पाया,
फिर अंत में समाया, श्री उद्धार कीजिए।
घट-घट के हो वासी, क्या मथुरा क्या है काशी,
अँखियाँ मेरी हैं प्यासी, दर्शन तो दीजिए।
नंदबाबा के दुलारे, जन-जन के हो प्यारे,
बन सबके सहारे, उपकार कीजिए।
जो राधा तुझे बुलाए, तुम दौड़े-दौड़े आए,
हम नैन हैं बिछाए, दर्शन तो दीजिए।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अब ये क़दम ना पीछे हटेंगे
- अभिलाषा
- अमरों में नाम लिखा लेना
- आओ मतदान करें
- आदिशक्ति मात भवानी
- आयो कृष्ण कन्हाई
- आसमान पर छाओगे
- करना होगा कर्म महान
- कर्मनिष्ठ
- कर्मयोगी
- किस आस में तू खड़ा
- कृष्ण भजन
- चले वसंती बयार
- देवी माँ
- धरती की पुकार
- नव निर्माण
- नव संवत्सर
- नवदुर्गा
- पुरुष
- प्रीत जहाँ की रीत
- बेटी धन अनमोल
- माता वीणापाणि
- मुट्ठी में आकाश करो
- मेघा रे
- मेरा गाँव
- मेरी क़लम
- मोहन प्यारा
- युगपुरुष
- राम भजन
- वन गमन
- शिक्षक
- श्रीहरि
- हमारा बिहार
- होली
- ख़ुद को दीप्तिमान कर
- ज़रा रुक
- ललित निबन्ध
- दोहे
- गीत-नवगीत
- सामाजिक आलेख
- किशोर साहित्य कहानी
- बच्चों के मुख से
- चिन्तन
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- किशोर साहित्य कविता
- चम्पू-काव्य
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-