नव निर्माण
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'युग है यह निर्माण का,
नूतन अनुसंधान का।
हम भी कुछ योगदान करें,
अपना चरित्र निर्माण करें।
प्रकृति ने है हमें रचाया,
निर्मल काया दे सजाया।
इसका हम अभिमान करें,
माँ प्रकृति का सम्मान करें।
मानव अंग हमने पाया,
सुंदर सृष्टि की हम पे छाया।
इसका हम गुणगान करें,
वसुधा का कल्याण करें।
हर सुख सुविधा यहाँ से पाते,
फिर क्यों हम भूल जाते।
करनी है हमको रखवाली,
माँ वसुधा का बन कर माली।
निर्माणों के पावन युग में,
हम चरित्र निर्माण करें।
अपने सत्कर्मों से हम,
सतयुग का आह्वान करें।
देकर अपनी निर्मल आहुति,
माँ प्रकृति का करके स्तुति।
जीवन अपना साकार करें,
फिर निज धाम प्रस्थान करें।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अब ये क़दम ना पीछे हटेंगे
- अभिलाषा
- अमरों में नाम लिखा लेना
- आओ मतदान करें
- आदिशक्ति मात भवानी
- आयो कृष्ण कन्हाई
- आसमान पर छाओगे
- करना होगा कर्म महान
- कर्मनिष्ठ
- कर्मयोगी
- किस आस में तू खड़ा
- कुछ नवीन सृजन करो
- कृष्ण भजन
- चले वसंती बयार
- देवी माँ
- धरती की पुकार
- नव निर्माण
- नव संवत्सर
- नवदुर्गा
- पुरुष
- प्रीत जहाँ की रीत
- बेटी धन अनमोल
- माता वीणापाणि
- मुट्ठी में आकाश करो
- मेघा रे
- मेरा गाँव
- मेरी क़लम
- मोहन प्यारा
- युगपुरुष
- राम भजन
- रामलला
- वन गमन
- वेदमाता भवानी
- शिक्षक
- श्रीहरि
- साथ हूँ मैं तुम्हारे
- सुनो कन्हैया
- हमारा बिहार
- होली
- ख़ुद को दीप्तिमान कर
- ज़रा रुक
- ललित निबन्ध
- दोहे
- गीत-नवगीत
- सामाजिक आलेख
- किशोर साहित्य कहानी
- बच्चों के मुख से
- चिन्तन
- आप-बीती
- सांस्कृतिक आलेख
- किशोर साहित्य कविता
- चम्पू-काव्य
- साहित्यिक आलेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-