त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन 

त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन   (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

बीसवाँ सर्ग: रावण की गुप्तचर लंकिनी

 

इस सर्ग में कवि उद्भ्रांत ने लंकिनी का परिचय अनोखे अंदाज़ में दिया है कि, तुलसी दास की काल-जयी कविता के माध्यम से सहस्रों साल बाद भी उसका नाम लंका के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। कारण था लंका के प्रवेश द्वार पर उसका सोने जैसा सुंदर-सा महल और उसकी अटारी से समुद्र के अनंत जल राशि का अवलोकन करने के कार्य हेतु रावण अपने राजकोष से उसे मासिक वेतन देता था, नौकर-चाकर उसकी सेवा में लगे रहते थे। सही मायने में वह एक नगर वधू थी और रावण की अदम्य शक्ति थी। लंका से सामुद्रिक व्यापार करने आने वाले हर जलपोत उसे रावण की विश्वसनीय जानकर अंशदान देता था और वह उनलोगों से बात करके रावण के शत्रुओं के बारे में जानकारी हासिल करने का गुप्त काम ही करती थी। इसे उद्भ्रांत जी कहते हैं:

“करते हुए उनसे वार्तालाप
मुझे ज्ञात हो जाता था-
कौन-रावण और लंका नगरी का
मित्र-कौन शत्रु है? 
एक तरह से मैं
रावण के गुप्त भेदिए का ही
करती काम।” 

अधिकांश आदिवासी जाति के लोग लंका में आते थे और लंकिनी को देखकर नगरी में प्रवेश करना सौभाग्य का सूचक मानते थे। इस तरह रावण के राज्य में व्यापारिक गतिविधियों की दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति होती जा रही थी। इस वाणिज्यिक विधि को कवि उद्भ्रांत जी ने इन शब्दों में अभिव्यक्त किया हैं:

उनका अवचेतन मन
रावण के अपरिमित बल-वैभव से
हो जाता आक्रांत; 
और इस तरह रावण के निरंतर संवर्धनशील
राज्य के प्रसार में वे
सहायक बन जाते। 

हनुमान से लंकिनी का परिचय भी अलग ढंग से कवि उद्भ्रांत ने करवाया है कि अचानक एक दिन समुद्र से निकल कर लाल-मुख वाला वानर लंका में प्रवेश करने जा रहा था। मगर बिना उसकी तरफ़ ध्यान दिए या अंशदान दिए वह बढ़ता ही जा रहा था। इस पदक्षेप को लंकनी ने अपने स्त्रीत्व का अपमान समझकर क्रोध से तिलमिला उठती है और उसे रोक कर उसके आने का कारण पूछती है, तो हनुमान अपने उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहता है कि वह सीता कि खोज में वहाँ आया है, तो लंकिनी उससे सीमा शुल्क माँगती है। इस पर हनुमान क्रोधित होकर लंकनी के ऊपर मुष्टिका प्रहार कर देता है और लंकिनी को ख़ून की उलटियाँ होने लगती है। उद्भ्रांत जी का यह काव्य बयान करता हैं:

वानर था हृष्ट-पुष्ट
परम शक्तिशाली, 
उसने किलकारी भरते हुए
और खौंखियाकर
अपनी मुष्टिका का
वज्र जैसा एक ही प्रहार
किया मुझ पर विद्युत की गति से, 
—मेरे द्वारा
भवन के सशस्त्र प्रहरियों को
बुलाने से पूर्व! 
 
मेरे मुख से
रक्तधार बह निकली।” 

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