विशेषांक: दलित साहित्य

19 Sep, 2020

पेड़ पर लटके हुए शव लड़कियों के

गीत-नवगीत | जगदीश पंकज

पेड़ पर लटके हुए 
शव लड़कियों के 
सिर्फ़ मादा जिस्म, या
कुछ और हैं 
 
कौन हैं ये लड़कियाँ 
रौंदी गयी हैं 
देह जिनकी 
क्यों प्रताड़ित है 
दलित अपमान को 
पीते हुए भी 
कौन हैं वे 
गर्व जिनको  
लाड़लों की क्रूरता पर 
क्यों समय निर्लज्ज 
बैठा मौन को 
जीते हुए भी 
 
सांत्वना के शब्द भी 
हमदर्द होकर 
गालियों के बन रहे 
सिरमौर हैं 
 
यह दबंगों की  
सबल, संपन्न 
सत्ता-अंध क्रीड़ा 
जब तुम्हारे बीच से 
उठकर, तुम्हें
धिक्कार देगी 
आज के असहाय 
जन की कसमसाहट 
मुखर होकर 
संगठित हो 
एक दिन संघर्षमय 
प्रतिकार लेगी 
 
रोक सकते क्रूरता 
तो रोक लो यह 
आ रहे बदलाव के 
अब दौर है

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