विशेषांक: दलित साहित्य

11 Sep, 2020

जादुई छड़ी

कविता | कावेरी

कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती 
उससे भी टेढ़ी सनातन धर्म 
और उसकी सड़ी-गली व्यवस्था है 
जिसे अपनाने के लिए सदियों से 
तिरस्कृत समाज व्याकुल है 
गर्त में मिलाने वाला यह धर्म 
जादुई छड़ी से लोगों को दिशा भ्रमित कर 
पूजा पाठ में लीन कर रहा है 
पहले तो नफ़रत ऐसी की 
कि विकास और सभ्यता से दूर 
अलग बस्तियाँ बनाई 
उस में कीड़े मकोड़े सा
बिलबिलाता रहा दलित 
शिक्षा के बल पर उस गली से बाहर निकला 
तो जादुई छड़ी उसके सिर पर ऐसी घूमी 
कि अपना रास्ता ही भूल गया 
और मूर्खो, तुम्हें पूजना है 
तो बुद्ध, ज्योतिबा फुले  
बाबा अंबेडकर और कबीर को पूजो 
जिन्होंने तुम्हारी आँखों में रोशनी डाली है।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

इस विशेषांक में
कहानी
कविता
गीत-नवगीत
साहित्यिक आलेख
शोध निबन्ध
आत्मकथा
उपन्यास
लघुकथा
सामाजिक आलेख
बात-चीत
ऑडिओ
विडिओ