विशेषांक: दलित साहित्य

19 Sep, 2020

सुना है मैंने  
वो करता है पैदा मुझे 
अपने पैरों से
क्योंकि उसका मस्तिष्क 
काम नहीं करता
उसकी छाती 
कर देती है मना फटने से
सिकुड़ जाती है नसें 
नाभि मार्ग की
जननेन्द्रियाँ हो जाती है
अवरुद्ध।
  
चलो पैरों से ही सही
पैदा तो उसने ही किया था ना?
फिर सुध क्यों नहीं ली कभी मेरी
फेंक दिया क्यों मुझे
किसी निरीह की भाँति
भूखे भेड़ियों
मांस नोचने वाले गिद्धों
आवारा साँड़ों और
नरपिशाचों के बीच
जब मन हुआ
इन भेड़ियों ने किया मेरा शिकार
मेरा मांस नोच-नोच कर
भरी इन गिद्धों ने ऊँची-ऊँची उड़ानें
मार-मार कर सींग
हटाया मुझे अपने रास्ते से
इन आवारा साँड़ों ने
पी कर मेरा लहू 
लाल हुए गाल इन नर पिशाचों के
और मैं तड़प-तड़प कर पुकारता रहा उसे
क्योंकि सुना था मैंने
दौड़ा चला आता है वो
दीन-हीनों की पुकार पर
फिर मेरी पुकार पर कभी 
क्यों नहीं आया वो?
मैं भी तो पुकार रहा हूँ
उसे सदियों से
पता नहीं क्यों
वह बस देखता रहा 
और होते रहे 
मुझ पर अत्याचार।
         
हाँ ये सत्य है
नहीं पुकारा मैंने उसे
कभी मंदिर में घण्टे बजा कर
नहीं पुकारा मैंने उसे कभी
वेद-शास्त्रों के मंत्र गाकर
क्योंकि नहीं दिया गया था
मुझे इसका अधिकार।
  
फिर भी पुकारा मैंने उसे
हृदय की गहराईयों से
पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ
मानकर कि 
वो कण-कण में व्याप्त है
परंतु ना कभी वो आया 
और ना उसके होने का कोई प्रमाण।
 
सदियों के इस संताप का
निष्कर्ष
वो है एक भ्रम
एक असत्य
एक व्यापार
जिसके नाम पर 
लूटा-खसोटा गया मैं            
होता रहा दीन-हीन
और फलते-फूलते रहे
उसके पहरेदार
रक्षक और व्यापारी।
 
किंतु
आज मिटाकर 
अज्ञानता के अँधेरे 
तोड़ता हूँ सारे भ्रम 
और असत्य का व्यापार
करता हूँ घोषणा
वो नहीं है
कहीं नहीं है 
जिसे पुकारती है
ये दुनियाँ
कहकर 
हे ईश्वर।

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