यूँ  तेरी याद से राब्ता रह गया 

15-05-2020

यूँ  तेरी याद से राब्ता रह गया 

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 156, मई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

यूँ  तेरी याद से राब्ता रह गया 
सर्द मौसम में कुछ गुनगुना रह गया 

 

वो तो चलता रहा अपनी रफ़्तार से 
हर कोई वक़्त को रोकता रह गया 

 

लो हवाएँ ज़माने की फिर आ गईं
भूल से इक दरीचा खुला रह गया 

 

कौन सी शै यहाँ की मुसाफ़िर नहीं 
एक तू है कि दिल में बसा रह गया

 

वक़्त का मोल तूने न जाना कभी 
तू मुझे नापता तोलता रह गया 

 

इक ख़ुमारी रहे बेक़रारी रहे 
दिल मिरा बस यही माँगता रह गया

 

लूटता वो रहा ज़िन्दगी के मज़े
काम देकर  मुझे ख़ुद बचा रह गया 

 

ज़िन्दगी में मिरी ख़ास आदत रही 
सिर झुकाया जहाँ फिर झुका रह गया 

 

मुख़्तसर सी मुलाक़ात में जो हुआ
 याद फिर उम्र भर वाक़या रह गया 

 

आ गईं आँधियाँ हिचकियों की यहाँ
क्या किसी से मेरा वास्ता रह गया

 

पागलों का मुहल्ला मुझे ठीक था 
मैं कहाँ दानिशों में फँसा रह गया

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