मुहब्बत इनायत दुबारा न कर दे

01-04-2022

मुहब्बत इनायत दुबारा न कर दे

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

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मुहब्बत इनायत दुबारा न कर दे 
मेरी आँख को बहता दरिया न कर दे
 
मुहब्बत से रखते हैं दूरी बनाकर
अकेले सही हैं वो तन्हा न कर दे
 
गली से मेरी तुम गुज़रना संभलकर 
मेरी दीद तुमको दीवाना न कर दे
 
मैं भूली हूं जिनको बड़ी मुद्दतों में
कहीं ये हवा फिर शनासा न कर दे
 
अंधेरों की मुश्किल से आदत हुई है 
कहीं ज़िंदगी अब उजाला न कर दे
 
मुझे खौफ़ है वक़्त की गर्दिशों से
मेरी ख्वाहिशों का तमाशा न कर दे
 
चले हैं जिसे हम मुकम्मल समझकर 
वही प्यार हमको अधूरा न कर दे

2 टिप्पणियाँ

  • 19 Mar, 2022 09:58 PM

    Kya kahne , sachmuch ek lajawaab peshkash Har sher mukammal apne haq ki baat kahta hua.

  • 19 Mar, 2022 09:55 PM

    Bahut sundar Last 2 lines are simply superb

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