राह में हम अपनी ही दीवार बन कर रह गये

01-11-2021

राह में हम अपनी ही दीवार बन कर रह गये

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

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राह में हम अपनी ही दीवार बन कर रह गये
एक से हम सैंकड़ों किरदार बन कर रह गये
 
काफ़िला मसरूर था आज़ाद भी आबाद भी
बेक़सी के हम वहाँ सरदार बन कर रह गये
 
तुम नहीं थे संग हमारे ज़िंदगी में और हम
इक ज़रा सी बात पे अख़बार बन कर रह गये
 
आज भी आज़ाद पंछी की तरह उड़ते हो तुम
और हम इस घर के सेवादार बन कर रह गये
 
ज़िंदगी भर इस क़दर हमने तपाया जिस्म को 
ए 'सरू' दुनिया में हम औज़ार बन कर रह गये

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