वफ़ा में चूर गर ये आपकी फ़ितरत नहीं होती

15-12-2021

वफ़ा में चूर गर ये आपकी फ़ितरत नहीं होती

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

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वफ़ा में चूर गर ये आपकी फ़ितरत नहीं होती
तो सच मानो हमें भी आपकी हसरत नहीं होती
 
कभी जाना हो हमसे दूर तो ये सोचकर जाना
किसी को याद करने की हमें फ़ुरसत नहीं होती
 
चटक जाता हमारा दिल लटक जाते ज़रूरी काम
हमारे पास देने को अगर रिश्वत नहीं होती
 
बड़ी मुश्किल से मिलता है किसी से दिल ज़माने में
किसी भी राह चलते से तो मुहब्बत नहीं होती
 
कोई बस मुस्कुराता है कोई रोता है जी भर भर
यहां हर एक की तो एक सी क़िस्मत नहीं होती

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