आँखों में तेरे ही जलवे रहते हैं 

01-05-2020

आँखों में तेरे ही जलवे रहते हैं 

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

आँखों में तेरे ही जलवे रहते हैं 
बातों में फूलों के चरचे रहते हैं


सीधे सुलझे ही हैं रस्ते दुनियाँ के
हम हैं कि ख़्वाबों में उलझे रहते हैं


जान हथेली पे रहती है कश्ती की
रोज़ यहाँ पर तूफ़ाँ आये रहते हैं 


कौन भला दुनियाँ में दर्द से छूटा है
दर्द से इतना क्यूँ घबराये रहते हैं


बैठ नहीं पाते इक पल को ख़ाली हम  
उल्टा सीधा कुछ कुछ करते रहते हैं


कोई उनके सिर इल्ज़ाम नहीं आता
जो दुनियाँ में काम से बचके रहते हैं


सबको अपना लेती है चाहत यारों 
सोचो क्या अपने ही अपने रहते हैं


 सहरा में रहके भी जिनको प्यास नहीं 
जाने किस बारिश में भीगे रहते हैं

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