क्या पढूँ ग़ज़लें लिखूँ अशआर मैं

01-06-2020

क्या पढूँ ग़ज़लें लिखूँ अशआर मैं

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 157, जून प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

क्या पढूँ ग़ज़लें लिखूँ अशआर मैं
जानता है तू नहीं फ़नकार मैं


मंज़िलों की ओर तो देखा नहीं 
रास्तों से कर रही थी प्यार मैं


चुप रही सहती रही तो कुछ न था
बोलते ही बन गई तक़रार मैं
 

गल रही हूँ रात दिन ख़ुद ताप में
दूसरों को दे रही आकार मैं


मोल क्या देना है कितनी चीज़ का
सीखने जाती नहीं बाज़ार मैं


प्यार ने आकर वफ़ा से यूँ कहा 
तू मिरी दुनियाँ तिरा संसार मैं


लाडली तू आसमाँ है सोच का
और तेरे व्योम का विस्तार मैं


दूसरों की सोचता है दिल मिरा
कर नहीं सकती कोई व्यापार मैं

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