नूर चेहरे पे निगाहों में यक़ीं पाते हैं

01-01-2022

नूर चेहरे पे निगाहों में यक़ीं पाते हैं

कु. सुरेश सांगवान 'सरू’ (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

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नूर चेहरे पे निगाहों में यक़ीं पाते हैं
उम्र के साथ तुझे और हसीं पाते हैं
 
आसमां ढूंढ़ लिया हमने तिरी उल्फ़त में
दिल की दहलीज़ को फ़िरदौस-ज़मीं पाते हैं
 
ज़ीस्त बे- क़ैफ़ कहीं दर्द का मंज़र क़ायम
क्यूँ मुहब्बत में मुहब्बत को नहीं पाते हैं
 
इश्क़ में रंग नये ढंग नये आँखों में
ख़्वाब फूलों की तरह ताज़ा-तरीं पाते हैं
 
अब 'सरू' रोज़ जलेंगे यूँ ही सूरज बन कर
रोज़ चलते हैं मगर ख़ुद को वहीं पाते हैं

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