आदमी प्यार में सोचता कुछ नहीं
कु. सुरेश सांगवान 'सरू’आदमी प्यार में सोचता कुछ नहीं
किस घड़ी मात होगी पता कुछ नहीं
आज पछता रही हूँ इसी बात पर
दोस्तों से लिया मशवरा कुछ नहीं
मुश्किलें हल हुई हैं न होंगी कभी
ज़िंदगी से बड़ा मसअला कुछ नहीं
हो रही हर तरफ़ ज्ञान की बारिशें
बारिशों में मगर भीगता कुछ नहीं
हम हमेशा रहे आमने सामने
दरमियाँ आज भी राब्ता कुछ नहीं
खींच ली है ज़बाँ क्या किसी ने ए दिल
आजकल बोलता पूछता कुछ नहीं
जो मिला है उसी में ख़ुशी ढूँढ ली
ज़िंदगी से रहा अब गिला कुछ नहीं
गर इबादत करो तो उसी की करो
इस ज़मीं पर ख़ुदा से बड़ा कुछ नहीं
कुछ हदें हैं तिरी कुछ मिरी भी रहीं
प्यार है आज भी फ़ासला कुछ नहीं
5 टिप्पणियाँ
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Very nice
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Bahut khoob ,shaandaar peshkash ke liye aapko bahut bahut Badhai. likhti rahen.
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Meari kahani likh diii
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बहुत खूब लिखा सरू
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Very nice
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