पेश आते हैं वो प्यार से आजकल
कु. सुरेश सांगवान 'सरू’212 212 212 212
पेश आते हैं वो प्यार से आजकल
ख़ुशबुओं के चले सिलसिले आजकल
दूर सबसे रहे हम यही सोचकर
लोग मिलते कहाँ हैं खरे आजकल
जिनको मैं अब तलक़ दे रही थी सबक़
वो पढ़ाने लगे हैं मुझे आजकल
अब मुहब्बत की इसमें जगह ही नहीं
हर किसी के हैं दिल में गिले आजकल
आज मिलने मिलाने की फ़ुर्सत किसे
बात हो जाती है फ़ोन से आजकल
किसको अपनी कहानी सुनाएं 'सरू'
है ही फ़ुर्सत मयस्सर किसे आजकल
1 टिप्पणियाँ
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24 Nov, 2021 12:48 PM
Excellent work mam... Very beautifully written❤️
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