विकास और बंदर
कपिल कुमार
राजा ने घोषणा की:
“महारानी के जन्मदिवस पर कोई कुछ भी माँग ले!”
राजा ने थोड़ी देर सोचते हुए कहा:
"लेकिन . . .
एक शर्त पर।”
जनता ने आश्चर्यचकित हो पूछा:
“महाराज!
क्या शर्त है?
आपकी।”
महाराज बोले,
“तुम्हारे किसी भी काम के परिणाम में
कोई बंदर न आये।”
पहले नंबर पर एक माली आया
उसने राजा के सम्मान में सिर झुकाया
और राजा से बोला:
“महाराज!
हमें एक ग़म है।
राज्य में पेड़ बहुत कम हैं।”
राजा ने अनुमति दी, “राज्य को पेड़ों से भर दो।”
माली थोड़े शायर मिज़ाज़ का ठहरा
उसने राजा को कृतज्ञता प्रकट की
और ताव-ताव में बोल पड़ा—
“अब देखना महाराज पेड़ ही पेड़ राज्य के होगे अंदर।
जिसकी टहनियों पर चिड़ियों के घोंसले और फल तोड़ते . . .”
महाराज ने पूछा, “क्या?
फल तोड़ते क्या?”
माली: “कुछ नहीं महाराज बच्चे।”
महाराज: ”तुकबन्दी कहाँ है,
अन्दर और बच्चे में?”
माली: “महाराज!
बच्चे नहीं बंदर।”
राजा का माथा ठनका
और उसने माली के प्रस्ताव को
तुरन्त कैंसिल कर दिया।
इतने में एक पंडित खड़ा हुआ—
“महाराज! महाराज!
राज्य में बड़े-बड़े अधर्मी हैं
यहाँ एक पुस्तकालय की कमी है।”
राजा ने पूछा, “तुम्हारे पुस्तकालय में धर्म से सम्बन्धित क्या होगा?”
पंडित ने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए कहा—
“इसमें वेद होंगे, पुराण होंगे,
रामायण के सीता और रामचंदर होंगे।
द्वापर के कृष्ण के उपदेश,
त्रेता में पुल बनाते नल-नील और बंदर होंगे।”
बस फिर क्या था?
धर्म के विकास में बंदर आ गया।
राजा की सभा में बैठे हुए
एक वैज्ञानिक ने कुछ कहना चाहा।
वह भी अपने विचारों को महाराज के समक्ष लाया॥
“महाराज!
आप ठहरे ईश्वर
आपके सामने हम कहाँ!
मेरी दृष्टि में इस राज्य में हो
एक आधुनिक विश्वविद्यालय यहाँ॥”
महाराज थोड़े ग़ुस्से में आये
बोले, “इस वैज्ञानिक के बच्चे को राज्य से बाहर करो
पंडित भी तो यही माँग कर रहा था।”
“महाराज! महाराज!
उन्होंने पुस्तकालय माँगा था
उनकी माँग में रामचंदर और बंदर दोनों थे
लेकिन
मेरी माँग में सिर्फ़ विज्ञान की पढ़ाई है।
महाराज!
इसमें बंदर नहीं होगा।
महाराज की उत्सुकता बढ़ी-
"बताओं क्या-क्या होगा
तुम्हारी पढ़ाई में?”
“महाराज!
हमारी पढ़ाई में-
गणित की,
भौतिकी की,
इंजिनियरिंग की,
रसायन विज्ञान की पढ़ाई होगी।
पूरी दुनिया में महाराज
आपकी वाही-वाही होगी॥”
महाराज तो महाराज ठहरे
बोले, “ओर जीव विज्ञान का क्या होगा?”
वैज्ञानिक: “महाराज! जीव विज्ञान भी होगा।”
महाराज: “क्या जीव विज्ञान में डार्विन का सिद्धान्त भी होगा?”
वैज्ञानिक: “महाराज, डार्विन के बिना तो जीव-विज्ञान निर्जीव है।”
महाराज: “डार्विन के सिद्धान्त में क्या-क्या है?”
वैज्ञानिक: “महाराज। इसमें आदमी का उद्विकास है।”
महाराज: “कैसा उद्विकास?”
वैज्ञानिक: “यही कि आदमी का विकास बंदर से किस प्रकार हुआ?”
महाराज के चेहरे पर
हल्की-सी मुस्कान आ गयी;
महाराज ने ढिंढोरचियों को बुलाया
महारानी के जन्मदिवस पर लुटाये धन का ढोल पिटवाया
राजा के चहेतों ने पूरे राज्य में
होर्डिग्स, पम्फलेट और बैनर लगवाये।
जिन पर लिखा था, “राजा नहीं ये तो है
दानवीर और सत्यवादी हरिशचन्दर।”
जनता के सपनों पर
कुंडली मारकर बैठ गया
एक बंदर॥
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