कपिल कुमार - हाइकु - 005
कपिल कुमार
1.
नभ से छन
प्रफुल्लित है मन
ओस ज्यों गिरी।
2.
लहरें आती
किनारों को देखने
गाती-बजाती।
3.
मेघों के घड़े
खेत जल से पटे
इतने बड़े।
4.
कौन बनाता
प्रकृति की अल्पना
कवि-कल्पना?
5.
मेघ करते
ज़ोर से मंत्रणाएँ
दहाड़-मार।
6.
फ़सलें डूबी
सिरफिरे बादल
बाल्टी उलेड़ें।
7.
कितने ख़्वाब
बचपन के गिरे
फटी जेब से।
8.
मेघों में हुई
इतनी खटपट
भू तक नाद।
9.
मेघ गर्जन?
दिल टूटने से, ज्यों
आवाज़ होती।
10.
प्रेम जीतेगा
ईर्ष्या के अखाड़े में
सारी कुश्तियाँ।
11.
प्रेम का दीप
जलकर लाएगा
हमें समीप।
12.
नदी में भैंसे
लेटी होके कूल, ज्यों
स्विमिंग पूल।
13.
मौन है संत
ज्ञान-प्रचार करें
घोघा-बसंत।