शहर – दो कविताएँ
कपिल कुमार
शहर 1
यह शहर
अनंत संभावनाओं से
घिरा हुआ है,
अनंत संभावनाएँ
तलाश करती है
एक ऐसा चेहरा
जो चला सके
सड़क पर चलते हुए
किसी भी पथिक पर चाकू,
यह शहर ढूँढ़ता है
एक ऐसा व्यक्ति
जो खुले में
राहजनी कर सके,
बग़ल से गुज़रने वाले लोग जा रहे हैं
मुँह को नीचे गड़ाए हुए।
शहर 2
कहते है
किसी शहर में
जितनी जल्दी
लोगों के फेफड़े
जवाब दे देते हैं
वह शहर उतना ही
विकसित होता है,
क्योंकि
चिमनियों से
निकलता हुआ धुआँ
मल्टी नेशनल कंपनियों के
ए.सी. से निकलती
क्लोरो-फ़्लोरो-कार्बन
शहर का विकास
तय करते हैं।