बिना शीर्षक
कपिल कुमार
अमित ने कक्षा में बैठे हुए संदीप से बड़ी विनम्रता के साथ पूछा, “ये प्रोफ़ेसर शंकधर कौन हैं?”
संदीप ने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा, “प्रोफ़ेसर साहब इस शहर के बहुत बड़े और जाने-माने अर्थशास्त्री हैं और अभी थोड़ी देर में इसी कक्ष में उनका एक व्याख्यान है।”
अमित ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “किस चीज़ का व्याख्यान?”
संदीप ने बताया, “प्रोफ़ेसर साहब, आज यह बतायेंगे कि यदि किसी कारण इस देश में आर्थिक मंदी आ जाये तो कोई व्यक्ति उस दौरान भी किस तरह अधिकतम लाभ प्राप्त करके सुखमय जीवन जी सकता है?”
संदीप की यह बात सुनकर अमित ने दुःखी होते हुए अपने बैग से एक अख़बार निकाला और पढ़ने के लिए संदीप को दिया। संदीप बार-बार बाहर की तरफ़ देखते हुए अख़बार के पन्ने पलटे जा रहा था। जैसे-ही उसने पाँच-छह पन्ने पलटे, उसकी नज़र एकदम से एक ख़बर पर रुक गयी। जिसको अख़बार ने मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था, “बैंक का क़र्ज़ न चुका पाने के कारण शहर के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने आत्महत्या की।”
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- कविता
-
- अंकुर
- अनन्त-प्रेम
- अस्तित्व
- इस दुनिया को इतना छला गया है
- उत्तर-निरुत्तर
- कविता और क्रांति
- क्योंकि, नाम भी डूबता है
- गाँव के पुराने दिन
- गाँव के बाद
- गाँव में एक अलग दुनिया
- चलो चलें उस पार, प्रेयसी
- जंगल
- दक्षिण दिशा से उठे बादल
- देह से लिपटे दुःख
- नदियाँ भी क्रांति करती हैं
- पहले और अब
- प्रतिज्ञा-पत्र की खोज
- प्रेम– कविताएँ: 01-03
- प्रेम– कविताएँ: 04-05
- प्रेम–कविताएँ: 06-07
- प्रेयसी! मेरा हाथ पकड़ो
- फिर मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है
- बसंत और तुम
- भट्टों पर
- भूख
- भूखे पेट
- मनुष्य की अर्हता
- मरीना बीच
- मोक्ष और प्रेम
- युद्ध और शान्ति
- रात और मेरा सूनापन
- रातें
- लगातार
- शहर – दो कविताएँ
- शान्ति-प्रस्ताव
- शापित नगर
- शिक्षकों पर लात-घूँसे
- सूनापन
- स्त्रियाँ और मोक्ष
- स्वप्न में रोटी
- हिंडन नदी पार करते हुए
- ज़िन्दगी की खिड़की से
- कविता - हाइकु
- कविता-ताँका
- कविता - क्षणिका
- विडियो
-
- ऑडियो
-