बिना शीर्षक

01-06-2025

बिना शीर्षक

कपिल कुमार (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अमित ने कक्षा में बैठे हुए संदीप से बड़ी विनम्रता के साथ पूछा, “ये प्रोफ़ेसर शंकधर कौन हैं?” 

संदीप ने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा, “प्रोफ़ेसर साहब इस शहर के बहुत बड़े और जाने-माने अर्थशास्त्री हैं और अभी थोड़ी देर में इसी कक्ष में उनका एक व्याख्यान है।” 

अमित ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “किस चीज़ का व्याख्यान?” 

संदीप ने बताया, “प्रोफ़ेसर साहब, आज यह बतायेंगे कि यदि किसी कारण इस देश में आर्थिक मंदी आ जाये तो कोई व्यक्ति उस दौरान भी किस तरह अधिकतम लाभ प्राप्त करके सुखमय जीवन जी सकता है?” 

संदीप की यह बात सुनकर अमित ने दुःखी होते हुए अपने बैग से एक अख़बार निकाला और पढ़ने के लिए संदीप को दिया। संदीप बार-बार बाहर की तरफ़ देखते हुए अख़बार के पन्ने पलटे जा रहा था। जैसे-ही उसने पाँच-छह पन्ने पलटे, उसकी नज़र एकदम से एक ख़बर पर रुक गयी। जिसको अख़बार ने मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था, “बैंक का क़र्ज़ न चुका पाने के कारण शहर के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने आत्महत्या की।” 

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