प्रेम– कविताएँ: 01-03

15-04-2023

प्रेम– कविताएँ: 01-03

कपिल कुमार (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


प्रेम-01
 
मैं, तुम्हें 
अपने प्रेम में
नहीं बाँध सकता, 
तुम आज़ाद हो
आज़ाद रहो; 
मैं नहीं चाहता हूँ
तुम मेरे 
प्रेम के बंधन में बँधकर
अपनी 
कल्पनाओं का विस्तार
अनंत ब्रह्मांड से समेटकर
समुद्र की एक बूँद पर लाकर 
केंद्रित कर दो। 
 
प्रेम-02
 
मुझे
प्रेम के नाम पर
कई बार
ठगा गया है—
प्रत्येक बार 
नये-नये तरीक़ों से। 
 
प्रेम-03
 
मैं एक कोरे 
काग़ज़ जैसा हूँ, 
जैसा 
तुम चाहो—
वैसा
इसको प्रेम से
भर लो।   
 
प्रेम-04
 
उसके बाद
उसकी गली का 
सूनापन
कचोटता रहा मुझे। 
 
प्रेम-05
 
बताओ अगर हो
इस शहर में कोई
अच्छा-सा चारासाज़, 
मुझे अपनी आँखों से
किसी के ख़्वाब 
निकलवाने है। 

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