इस दुनिया को इतना छला गया है
कपिल कुमार
किसी पथ पर
फूल बिछाने पर
लोग उस पथ पर चलते नहीं हैं
अपितु देखते हैं
संदेह की दृष्टि से
फूल बिछाने वाले को।
इस दुनिया को इतना छला गया है
किसी के दुःख में
शामिल होने को समझा जाता है
स्वार्थ।
जो जितना ज़्यादा छलता है
वो उतना ज़्यादा चलता है
दुनिया दिखावे पर चल रही है
सच की ग़लतफ़हमी पल रही है
उसके बाद भी . . . . . . . . .
छलना जारी है
चलना जारी है।
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