मनुष्य की अर्हता

15-04-2023

मनुष्य की अर्हता

कपिल कुमार (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

मनुष्य ने खो दी
मनुष्य होने की 
अर्हताएँ—
 
ये अर्हताएँ
दब चुकी हैं
एक विशाल पर्वत की
तलहटी में—
 
जिस पर्वत की
चोटी पर
नृत्य कर रहे हैं
क्रोध, इर्ष्या, भय
राग-द्वेष और मैं। 
 
उस पर्वत की चोटी
इतनी अधिक वज़नदार
हो गयी है—
जिसके भार से
मनुष्य होने की
समस्त अर्हताएँ
इतनी नीचे
धँस चुकी है
जिनको उठाना
असंभव प्रतीत होता है। 

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