रात और मेरा सूनापन

01-06-2023

रात और मेरा सूनापन

कपिल कुमार (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

रात सोने के लिए थी
सूरज भी
रात के टीले पर
गहन निद्रा में सो गया था, 
 
पक्षी, मीलों का सफ़र
तय करके
अपने-अपने नीड़ों में लौट गए थे, 
 
प्रेमी-प्रेमिका
एक-दूसरे को याद करते हुए
अचानक से
पीछे को लुढ़क गए थे,
 
गाँवों की सड़के
सुनसान रास्तों में
तब्दील हो गयी थी, 
 
तितलियाँ, फूलों को त्यागकर
चट्टानों से लिपटकर
सोई हुई थी,
 
‘मैं भी सोना चाहता था’ 
परन्तु, मेरे अंदर का सूनापन
कचोट रहा था, मुझे! 
 
मैं सोच रहा था
मैं अकेला हूँ
परन्तु, छत मेरे साथ रो रही थी, 
दुनिया कहती है
वो, बाहर बारिश हो रही थी। 

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