कपिल कुमार - हाइकु - 002

15-03-2023

कपिल कुमार - हाइकु - 002

कपिल कुमार (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

1.
गाँवों के सिर
बिटोड़ो की लाइन
ज्यों अल्पाइन। 
 
2.
साँझ-सवेरे
दूब फैलाये केश
ओस की ऐश। 
 
3.
खेतों का ख़ार
मेह की बाट देख
पड़ी दरार। 
  
4.
रश्मि भोर की
सभी देख के बोले
बड़े ज़ोर की। 
 
5.
धरा के सिर 
घूमें, मेघों के टीले
बड़े-हठीले। 
 
6.
भँवरा सोया
भू पर फूल सजे
ओस के मज़े। 
 
7.
बनके राख
श्मशान में पड़े
तोपची बड़े। 
 
8.
हवा के झोंके
कोई तो इन्हें रोके
खेत लुढ़के। 
 
9.
तेज़ हवाएँ
कोई इन्हें बाँधे, ये
सीमाएँ लांघें। 
 
10.
चौपालें ढूँढें
कोई तो आके बैठे
बड़े या बूढ़े। 

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