गाँव के पुराने दिन

01-04-2024

गाँव के पुराने दिन

कपिल कुमार (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कहाँ गये वो मल्लाहे
कहाँ गयी वो नाव
जो खड़ी थी इस निर्जन तट पर
इस उम्मीद में-
कोई तो लौटेगा शहर से
गाँव की रेतीली गड्ढों वाली सड़कों पर
कोई तो बैठेगा
ऊँचे और विशाल दरख़्तों के नीचे। 
 
आज, फिर मैं सोच रहा हूँ! 
उस साँझ के बारे में
जो उदास होती है
किसी दिन के कारण नहीं, अपितु
उस व्यक्ति के लिए
जो नहीं लौटता, कभी वापस गाँव। 
 
उन डालों का क्या होगा? 
जिनको मैंने चूमा था
बड़े वात्सल्य से
जिनकी पत्तियों में
मैंने हाथ फिराये थे
एक प्रेमी के जैसे। 
 
उन पटबिजनों का क्या होगा? 
जिनको, मैं भूल गया
शहर की चकाचौंध में। 
 
मैं सोचता हूँ-
गाँवों ने कितना कुछ दिया है
शहरों को, 
बदले में शहर
मुझे भी नहीं लौटा सका
गाँव को। 

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