तुम्हारे जैसा कोई नहीं
पवन कुमार ‘मारुत’
(मनहरण कवित्त छन्द)
भरोसेमन्द भाई-भाई भला भव भीतर,
भाई-भाई का कंधा-कवच कहलाता है।
सच्चा साथी सहारा भ्राता-भ्राता का कवि कहे,
भैया भगवान भुवन का कहलाता है।
दुनिया देती ज़हरीला जख़्म जो जहान में,
मरज़ में मलहम माँ-जाया लगाता है।
“मारुत” मत मानो मत रखो रंजिश रार,
सहोदर संजीवनी बूटी बन जाता है॥
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