नदी नहरों का निवेदन
पवन कुमार ‘मारुत’
(मनहरण कवित्त छन्द)
सुन्दर सजा सारा शहर स्वप्न-सा सुहाना,
चारु चम्बल चमकती चाहत जगाती।
शीतल सुहावनी नहरें नदी निकालती,
कैसे कहूँ कितनी कोटा को शोभा सजाती?
वाक़या व्याकुल कल का करता कलेजे को,
मैले मन से नदी-नहरें गन्दी हो जाती।
स्वर्ग-सी सुखद नदी नहरें नवाती नार,
डालो क्यों कचरा काया कालिख लग जाती?