अन्धे ही तो हैं
पवन कुमार ‘मारुत’
(रूप घनाक्षरी छन्द)
अन्धभक्त असामान्य अज्ञानी अन्धविश्वासी,
बहकते बेचारे बहकाते बातुल धूर्त।
अतीव अज़ीब-ओ-ग़रीब दयनीय दशा,
तर्क तजते तमाशा बनते मनुष्य मूर्त।
विरोध विज्ञान का करते कमण्डल क्योंकि,
मानस माय मैला भरा अत्यधिक अमूर्त।
कोई कितना समझाओ समझता न नर,
‘मारुत’ माने मतिमन्द मन मुख्य मूहूर्त॥