अन्धे ही तो हैं

01-06-2025

अन्धे ही तो हैं

पवन कुमार ‘मारुत’ (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)


(रूप घनाक्षरी छन्द) 
 
अन्धभक्त असामान्य अज्ञानी अन्धविश्वासी, 
बहकते बेचारे बहकाते बातुल धूर्त। 
अतीव अज़ीब-ओ-ग़रीब दयनीय दशा, 
तर्क तजते तमाशा बनते मनुष्य मूर्त। 
विरोध विज्ञान का करते कमण्डल क्योंकि, 
मानस माय मैला भरा अत्यधिक अमूर्त। 
कोई कितना समझाओ समझता न नर, 
‘मारुत’ माने मतिमन्द मन मुख्य मूहूर्त॥

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