अब आवश्यकता ही नहीं है

15-09-2025

अब आवश्यकता ही नहीं है

पवन कुमार ‘मारुत’ (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

मैंने देखा अक्सर अर्द्धनग्न अवस्था में उसे, 
या फटे-पुराने चिथड़ों में कभी-कभी। 
 
टुकड़े-टुकड़े के लिए मोहताज रहा जीवनभर, 
रोटी मिली तो बिना साग के कभी-कभी। 
 
आज आराम से सोया है पैर पसारकर, 
उड़ाई है स्वच्छ सफ़ेद धोती बेदाग़, 
और मुख में शुद्ध देशी घी घाला है। 
 
अफ़सोस, 
अब आवश्यकता उसे नहीं इनकी तनिक भी, 
जब थी, तब तुम्हें फ़िक्र नहीं थी॥

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