थकी हुई जूतियाँ
पवन कुमार ‘मारुत’
सवाल करती हैं घिसी हुई जूतियाँ,
थक गई हूँ चल चलकर मैं,
और कितना घिसोगे?
सुनकर एक तरफ़ ख़्याल आया,
उन छह-छह मासूम कलित कलियों का,
जो खिलने के लिए तैयार हैं,
सहारा पाकर किसी मज़बूत दरख़्त का।
और दूसरी ओर तमाचा मारते उन बीमार वृक्षों का,
जो बड़े आराम से चोट करके कहते हैं,
बिना भाई की बहन से विवाह नहीं करेंगे॥
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