सौवीं कहानी
डॉ. आर.बी. भण्डारकर(लघुकथा / लघुनाटक)
"लघुकथा के इस मंच पर स्वागत है, मंजुल जी आपका।"
"जी,धन्यवाद।"
"मंजुल जी! आप लघुकथा का पाठ करें, इससे पहले हम अपने श्रोताओं को आपका एक वीडियो दिखाना चाहेंगे, आप सहमत हैं?"
"जी, दिखाइए, दिखाइए।"
(वीडियो चालू होता है।)
(बैठक में पूर्व और पश्चिम की दीवालों से सटे थ्री सीटर सोफ़े लगे हुए हैं। उत्तर की ओर की दीवाल से सटा सिंगल सीटर सोफ़ा है तो दक्षिण की दीवाल से सटे सुसज्जित रैक पर नए ज़माने का बड़ा एल ई डी टीवी रखा हुआ है। पश्चिमी दीवाल के सहारे सोफ़े और रैक के बीच एक दीवान बिछा हुआ है। श्रीमती मंजुल जी दीवान पर बैठी अख़बार पढ़ रही हैं।)
उनके पति आकर दीवान से सटे वाले सोफ़े पर बैठ जाते हैं।
श्रीमती मंजुल- "हो गया सवेरा? हद हो गयी, कितना सोते हैं आप?"
"कहाँ अधिक सोया; अभी सवा छह ही तो बजे हैं।"
(मंजुल जी अख़बार दीवान पर रखते हुए) "चाय पियेंगे?"
"जी, आधा कप।"
"जीss आधा कप! कितनी बार कहा, चाय मत पिया करो, नुक़सान करती है आपको, मानते ही नहीं।"
(मंजुल जी अंदर की ओर जाती हुई दिखतीं हैं।...थोड़ी देर बाद चाय लाती हुई दिखती हैं, बैठक में आते ही चाय का कप पति के सामने टी टेबल पर रखकर पति से अख़बार झटक लेती हैं।)
"आप चाय पियो।"
(पतिदेव अख़बार के सहपत्र 'स्टार,' 'सिटी चर्चा' उठा लेते हैं। उन्हें ही पढ़ने लगते हैं; साथ ही चाय भी पीते जाते हैं।)
मंजुल जी अख़बार पढ़ते हुए- "अरे हद हो गयी। सब्ज़ियों के भाव तो आसमान छू रहे हैं।... यह लो, फिर हो गयी कवर्ड केम्पस में चोरी।.. एक्सीडेंट! क्या हो रहा है शहर में? रोज़ दो चार एक्सीडेंट हो ही जाते हैं।... (सिर उठाकर बाहर की ओर देखते हुए)
"फिर बादल छाए हुए हैं, लगता है आज पानी फिर बरसेगा।"
(अब मंजुल जी पति की ओर देखती हैं जो चाय ख़त्म करने के बाद उन्हीं की ओर टकटकी लगाकर देख रहे होते हैं।)
"क्या हुआ? .....मुझे क्यों घूर रहे हो?"
"घूर नहीं रहा हूँ प्रभु, प्रतीक्षा कर रहा हूँ... यह टेप रिकॉर्डर बन्द हो, तो मैं भी कुछ पढ़ पाऊँ।"
(वीडियो फ़ेड आउट होता है।)
सूत्रधार-"हा हा हा हा..घर घर की यही कहानी है।... कोई बात नहीं मेरे घर भी ऐसा होता है।"
श्रीमती मंजुल पहले कुछ झेंपती-सी हैं, फिर सूत्रधार के साथ साथ ठहाके लगा कर हँसने लगती हैं।
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