मैं हूँ मित्र तुम्हारा आलू।
सीधा-सादा,भोला-भाला
फ़ितरत नहीं ज़रा भी चालू।
मुझे उबालो फिर तुम खाओ
स्वाद अनोखा, बलि-बलि जाओ।
मुझे भून कर भी खा सकते
स्वाद और बढ़िया पा सकते।
क़िस्म-क़िस्म की सब्ज़ी बनती
कितनी? ज़रा कठिन है गिनती।
सबका मुझ पर लाड़ घनेरा
सब कहते "यह साथी मेरा।"
बैंगन, परवल, लाल टमाटर
पालक, गोभी, अहा! ये मटर।
मित्र सभी हैं मधुर सब्ज़ियाँ
फ़ेहरिस्त लम्बी है इनकी।
हाँ, किंचित दूरी रखता हूँ
तासीर कड़वी है जिनकी।
चना काबुली या हों देसी
हम मिल बनते स्वाद निराला।
यदि पनीर का साथ मिले तो
तुम लोगे चटखारे लाला।
बनती कढ़ी, मठा के आलू
आलू-भुजिया औ दम-आलू।
मन चाहे तुम वहाँ मिला लो
तरह तरह की चाट बना लो।
चिप्स और पापड़ बनते हैं
भजिया, भुजिया का क्या कहना।
नहीं मौसमी सब्ज़ी हूँ मैं
हर मौसम में है, मेरा रहना।
संग मसालों को ले करके
चाट, समोसों में मैं रहता।
स्वाद और सेहत मैं देता
कुछ भी ग़लत नहीं मैं कहता।
सोडियम और पोटैशियम मुझमें
प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट है मुझमें
छियत्तर प्रतिशत है मुझमें पानी।
विटामिन्स, फ़ाइबर्स हैं सुन ज्ञानी।
बच्चे, युवा, वृद्ध भी खाएँ
पतलू खाएँ, मोटू खाएँ।
मैं तो सबको ही भाता हूँ
स्वाद सलौना दे पाता हूँ।
मुझको गेंद बनाकर खेलो
उपज कहीं भी मेरी ले लो।
दोमट, बलुही काली मिट्टी
रहे न उसमें कंकड़-गिट्टी।
तनिक सिंचाई, गुड़ाई कर लो
पैदावार अधिक, घर भर लो।
शीत-गृह में मुझको रख लो
टिकूँ बहुत दिन निश्चित कर लो।
पहचाना जाता दुनिया भर में
मैं ऐसा प्यारा, न्यारा आलू।
मेरे बिना रसोई सूनी
फ़ितरत नहीं ज़रा भी चालू।
1 टिप्पणियाँ
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This is really awesome and very thoughtful.
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