परिवर्तन

01-03-2024

परिवर्तन

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 
कष्ट उठा कर भी निर्मल मन 
रहना मैंने ठान लिया है; 
सबको, सबकी सहना उत्तम
यह रहस्य अब जान लिया है। 
 
यह दुनिया है जैसी, जो भी 
अच्छी है, यह मान लिया है; 
सच्चे पथ पर चलने का प्रण
अप्रतिम, हर दम ठान लिया है। 
 
पत्थर जैसा कठोर बनना
हर दम, हरगिज़ ठीक नहीं है; 
मक्खन-सा मृदु होना उत्सव
यह भी अब तक जान लिया है। 
 
सुख-दुख, भला-बुरा सब सम हैं
भाव चाहिए यदि ऐसा; 
निर्लिप्त भाव जगाना होगा
तथ्य अनोखा जान लिया है। 
 
भगवन राम, कृष्ण से यदि कुछ, 
कृपा चाहिए थोड़ी भी; 
तुलसी, सुर बने बिन दुर्लभ, 
ऐसा निश्चय जान लिया है। 

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