हाफ़ हाफ़! 

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

छोटी बेटी के विवाह 21 अप्रैल के लिए अनेक सामान ख़रीदे। पुत्र के साथ साथ कई अवसरों पर बड़ी बिटिया भी साथ रही। बड़ी बिटिया साथ रही तो उसके पुत्र, मेरे लाड़ले दौहित्र चार वर्षीय ओम भैया जी भी साथ रहे। 

साड़ियाँ ख़रीदीं। बिटिया ने पसंद के आधार पर दूकानदार से कहा कि दोनों प्रकार की साड़ियाँ हाफ़ हाफ़ (छः छः) कर दो। पेंट और शर्ट्स की ख़रीदी पर भी यही हुआ। ओम भैया जी इन सबको बहुत ग़ौर से देखते सुनते रहे। 

घर वापसी के समय कार में डीज़ल लेने के उद्देश्य से पेट्रोल पंप पर पहुँचे। सेल्स बॉय ने पूछा, “डीज़ल या पेट्रोल?” (बिटिया की स्विफ्ट डिज़ायर गाड़ी डीज़ल वाली है) 

बिटिया सेल्स मैन से कुछ बोलती इससे पहले ही ओम भैया जी बोले—“हाफ़ हाफ़ डाल दो।” 

सेल्स मैन सहित हम सब लोग ज़ोर-ज़ोर से हँस पड़े; पर ओम भैया जी निर्विकार भाव से बैठे रहे। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा
चिन्तन
सामाजिक आलेख
पुस्तक समीक्षा
कविता
कहानी
कविता - क्षणिका
बच्चों के मुख से
डायरी
कार्यक्रम रिपोर्ट
शोध निबन्ध
बाल साहित्य कविता
स्मृति लेख
किशोर साहित्य कहानी
सांस्कृतिक कथा
विडियो
ऑडियो