आर. बी. भण्डारकर – डायरी 007 – बाल मनोविज्ञान
डॉ. आर.बी. भण्डारकरदिनांक 18 जून 2021
मेरे दौहित्र ओम भैया जी; अभी 4 + वर्ष के हुए हैं; एकदम कृशकाय, पर बड़े ही ऊर्जावान हैं। . . . इनकी बातें सुनकर, इनकी कल्पना-शक्ति और अवलोकित, अनुभूत तथ्यों को जोड़ने की शक्ति जानकर स्विट्ज़रलैंड के बाल-मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे (Jean Piaget) का स्मरण हो आता है।
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सुबह के नौ बजे हैं। मैं नाश्ता करके डायरी लिखने बैठा ही था कि आप आ गए, हमेशा की तरह मेरी बग़ल में मुझसे सटकर बैठ गए।
अब मैं क्या करता? मैंने क़लम जेब में रख ली; खुली डायरी (Note book) बंद कर दी; और अब 'ओम उवाच' की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
लेकिन यह क्या? भैया जी उठकर चले गये !!! . . . .
थोड़ी ही देर में वे अपनी साइकिल लेकर आ जाते हैं। फिर सब्ज़ी की तीन खण्ड वाली प्लास्टिक ट्रॉली खाली करके उठा लाते हैं। (अब यह तो निश्चित हुआ कि ट्रॉली में रखी हुई सब्ज़ियाँ रसोई घर में इधर-उधर आवारा घूम रही होंगी।)
भैया जी ट्रॉली को साइकिल के पीछे बाँधने लगते हैं।
"यह क्या कर रहे हो ओम भैया?" इतना सुनकर वे पुनः आकर मुझसे सटकर बैठ जाते हैं। . . . "नाना जी, मैं मिट्ठू दीदू और पीहू दीदू को भीम बैठका ले जाना चाहता हूँ, इसलिए साइकिल में ट्रॉली बाँध रहा हूँ।"
मुझे बहुत ज़ोर की हँसी आती है पर मैं मुँह पर हाथ रखकर अपनी हँसी रोक लेता हूँ।
भीम बैठका जाने वाला कथन पास में ही डायनिंग टेबल पर बैठी ओम भैया जी की बुआ जी (वास्तव में मौसी) भी सुन लेती हैं।
"आउल (owl)! साइकिल से कैसे जाएगा। कार से जाना।"
ओम– "बुआ! हम लोग भीम बैठका में कैफ़े में फ़्रूट जूस पीकर फिर वहाँ से वाशिंगटन जायेंगे।"
बुआ (अपनी हँसी दबाती हुई)– "हाँ, तो चले जाना, क्या परेशानी है?"
ओम– "आउल(Owl) अपनी कार तो व्हाइट (White) कलर की है। वाशिंगटन जाने के लिए उस पर ब्लैक (black) कलर करवाना पड़ेगा।"
"क्यों?"
"वाशिंगटन में ब्लैक कारें ही चलती हैं।"
इतने में बड़ी बिटिया जी आ जाती हैं। छोटी बिटिया उनको ओम भैया जी की गतिविधियाँ कथोपकथन सहित बताती हैं।
बड़ी बिटिया जी– "यह ऐसा इसलिए कह रहा है कि दरअसल पिछली बार हम लोग जब भीमबैठका गए थे तब यह मिट्ठू, पीहू को बहुत याद कर रहा था। जब सबने एक कैफ़े में फ़्रूट जूस पिया था तब तो इसने ज़िद करके मिट्ठू, पीहू के लिए भी जूस के टेट्रा पैक ख़रिदवा ही लिए थे। . . . यह भी कह रहा था कि अब मैं मिट्ठू दीदू और पीहू दीदू को अपनी साइकिल पर बैठाकर भीम बैठका लाऊँगा।"
भीमबैठका मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किमी दक्षिण-पूर्व में रायसेन ज़िले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदिम-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के यह चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। भारतीय पुरातत्त्व विद डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा 1957-58 में खोजे गए इस क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल और जुलाई सन् 2003 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के एक पात्र भीम से संबन्धित होने के कारण ही भीमबैठका/भीम बेटका कहलाता है। यह गुफाएँ विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं; इसके बाद दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं। भीमबैठका में 600 शैलाश्रय हैं जिनमें 275 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं। पुरातत्व विद मानते हैं कि यह स्थान पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। यहाँ के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रिया-कलापों घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। इनके अलावा बाघ, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घड़ियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है। इन चित्रों में खनिज रंगों का उपयोग हुआ है। रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है। इन शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान एक लाख वर्ष पुराने बताए जाते हैं। यहाँ की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है। भीम बैठका निःसंदेह प्राचीन मानव विकास के आरंभिक स्थानों में से एक है। (प्रत्यक्ष अवलोकन और विकीपीडिया आदि पर आधारित।)
ओम भैया जी भीम बैठका में एक सूचना पट्ट को पढ़ने की कोशिश करते हुए। |
ओम भैया जी भीम बैठका में एक पाषाण बेंच पर बैठ कर शैलाश्रयों का विहंगावलोकन-सा करते हुए। |
छोटी बिटिया– "दीदी यह वाशिंगटन और वहाँ काले रंग की कारों का क्या चक्कर है?"
"यह टी वी पर, फोन पर तमाम तरह के कार्टून और वीडियो देखता रहता है सो कहीं वाशिंगटन का नाम सुना होगा, कहीं काली कारें चलती देखी होंगी, सबको जोड़ कर इन महाशय जी ने अपनी कहानी बना ली।"
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"सबको जोड़ कर इन महाशय जी ने अपनी कहानी बना ली।" बिटिया जी के इस कथन से मुझे एक बात याद आ गयी। . . . कुछ दिन पहले ओम भैया मेरे पास बैठे थे—चिंता मग्न से। मैंने पूछा, "क्या हुआ भैया जी?"
तो बोले, "नाना जी मैं 'नाना हाउस' और 'मडी पडल हाउस' को जोड़ना चाहता हूँ।"
"कैसे?"
"एक फ़्लाई ओवर ब्रिज बनाना पड़ेगा।"
मैं आश्चर्य चकित! इतने छोटे बच्चे के मस्तिष्क में क्या-क्या उमड़ता-घुमड़ता रहता है!
दरअसल ओम भैया जी अपनी ननिहाल वाले घर को "नाना हाउस" और अपने घर को "मडी पडल हाउस" कहते हैं। मडी पडल हाउस इसलिए क्योंकि जब ये पहली बार वहाँ गए थे तब उस मकान के सामने की सड़क पर कुछ पानी, कुछ कीचड़ था।
ओम भैया जी जब भी 'नाना हाउस' से लगभग तीन किलोमीटर दूर अपने 'मडी पडल हाउस' जाते हैं तब अक़्सर रास्ते में अधिक ट्रैफ़िक के कारण जाम जैसी स्थिति बनती है तब भैया जी को बड़ी कोफ़्त होती है, "मम्मा गाड़ी क्यों धीमी कर ली/गाड़ी क्यों रोक दी?" तो कभी, "मम्मा ये अंकल गाड़ी क्यों खड़ी किये हुए हैं, आगे क्यों नहीं बढ़ते।"
बिटिया द्वारा यह कहने पर कि भैया जी बहुत भीड़ है इसलिए अंकल लोग गाड़ियाँ धीरे-धीरे चला रहे हैं, यह बेचारे एकदम मायूस हो जाते हैं। इनकी फ़्लाई ओवर ब्रिज बनाने की योजना इनकी इसी समस्या का निदान है।
मैंने कहा, "भैया जी फ़्लाई ओवर ब्रिज तो रोड बनवाने वाले अंकल लोग बनाते हैं। आप उनकी रोड पर फ़्लाई ओवर कैसे बनायेंगे?"
भैया जी कुछ खीजते हुए से बोले, "नाना जीsss . . . .मैं रोड (Road) पर नहीं बनाउँगा। मैं पहले 'नाना हाउस' के गेट (Gate) पर दो पिलर (pillar) बनाउँगा,फिर 'मडी पडल हाउस' के गेट (Gate) पर दो पिलर (pillar) बनाउँगा। फिर इनको एक बड़ी रोप (Rope) से जोड़ दूँगा। मम्मा की कार में दो हुक लगाऊँगा, उन्हें एक छोटी रोप (Rope) से पिलर (pillar) के पास जोड़ दूँगा। स्विच (Switch) दबाते ही कार बड़ी रोप (Rope) पर पहुँच जाएगी फिर सीधे 'मडी पडल हाउस' पहुँच जाएगी।"
छोटी बिटिया– "अल्लू ! (Owl) यह तो रोप-वे (Rope way) बन गया। फ़्लाई ओवर ब्रिज (Fly Over bridge) कहाँ बना?"
ओम भैया– "नाना जी sss बुआ परेशान करती है। . . . आप पिट्टू लगा दो।"
छोटी बिटिया जोड़ती है– "ओम भैया की।"
"नो (No) बुआ की।"
मैं विचार मग्न हूँ कि आज के युग में ये नौनिहाल कितनी कम उम्र में ही कितनी एडवांस टेक्नोलॉजी के बारे में जानने, सोचने लगते हैं, कितना कुछ सीख भी जाते हैं!
छोटी बिटिया (हँसते हुए)– "भैया जी आप रोप-वे (Rope way) तो बना सकते हैं पर ब्रिज कोरपोरेशन (Bridge Corporation) में अभी चीफ टेक्निकल एडवाइज़र (Chief Technical advisor) का कोई पद ख़ाली नहीं है।"
सब लोग हँस पड़ते हैं। पर भैया जी पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है।
मुझे अपनी आज की डायरी में भैया जी की यह योजना लिखना एकदम भा गया है। . . . मैं आश्वस्त हूँ कि देश का भविष्य उज्ज्वल है।
1 टिप्पणियाँ
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बहुत सही लिखा सर, अगर इतने ज्ञानवान नौनिहाल हैं तो बेशक भविष्य उज्जवल ही होगा, ओम भैया जी को आशीर्वाद
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