बाल मन

01-10-2024

बाल मन

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 262, अक्टूबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

“बब्बा जी आपने आज का न्यूज़ पेपर पढ़ लिया?”

परीक्षा देकर आये चौथी कक्षा में पढ़ने वाले पीहू जी ने आते ही बैठक में बैठे अपने बब्बा जी से पूछा।

 बब्बा जी: (हँसते हुए) “हाँ ऽऽऽ . . . पूरा फ़िनिश कर दिया।”

“पेपर मुझे देना बब्बा जी।”

(बब्बा जी पीहू जी को पेपर देते हैं। . . . पीहू जी वहीं बैठकर पेपर पर कुछ लिखते हैं। फिर कपड़े बदलने के लिए अपनी माँ के पास फ़र्स्ट फ़्लोर पर चले जाते हैं।)

बब्बा जी: (स्वगत) देखूँ ज़रा ऐसा क्या लिखना था पीहू जी को कि स्कूल से आते ही बिना कपड़े बदले लिखने बैठ गए वह भी पेपर पर।

(पेपर उठाते हैं।)

पढ़ते ही हँस पड़ते हैं। पीहू जी ने लिखा था:

“Happy examination ending day.”

अच्छा ! आज पीहू जी की अर्द्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हुई है !

बात हँसी की है पर यह सोचने के लिए विवश करती है कि क्या कोई भी परीक्षा नाम ही बच्चों के लिए तनाव है?

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