बाल मन
डॉ. आर.बी. भण्डारकर“बब्बा जी आपने आज का न्यूज़ पेपर पढ़ लिया?”
परीक्षा देकर आये चौथी कक्षा में पढ़ने वाले पीहू जी ने आते ही बैठक में बैठे अपने बब्बा जी से पूछा।
बब्बा जी: (हँसते हुए) “हाँ ऽऽऽ . . . पूरा फ़िनिश कर दिया।”
“पेपर मुझे देना बब्बा जी।”
(बब्बा जी पीहू जी को पेपर देते हैं। . . . पीहू जी वहीं बैठकर पेपर पर कुछ लिखते हैं। फिर कपड़े बदलने के लिए अपनी माँ के पास फ़र्स्ट फ़्लोर पर चले जाते हैं।)
बब्बा जी: (स्वगत) देखूँ ज़रा ऐसा क्या लिखना था पीहू जी को कि स्कूल से आते ही बिना कपड़े बदले लिखने बैठ गए वह भी पेपर पर।
(पेपर उठाते हैं।)
पढ़ते ही हँस पड़ते हैं। पीहू जी ने लिखा था:
“Happy examination ending day.”
अच्छा ! आज पीहू जी की अर्द्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हुई है !
बात हँसी की है पर यह सोचने के लिए विवश करती है कि क्या कोई भी परीक्षा नाम ही बच्चों के लिए तनाव है?
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- लघुकथा
- चिन्तन
- सामाजिक आलेख
- पुस्तक समीक्षा
- कविता
- कहानी
- कविता - क्षणिका
- बच्चों के मुख से
- डायरी
-
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 001 : घर-परिवार
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 002 : बचपन कितना भोला-भाला
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 003 : भाषा
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 004 : बाल जीवन
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 005 : वानप्रस्थ
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 006 : प्रतिरोधक क्षमता
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 007 – बाल मनोविज्ञान
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 008 – जीत का अहसास
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 009 – नाम
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 010 – और चश्मा गुम हो गया
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 011 – इकहत्तरवाँ जन्म दिवस
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 012 – बाल हँस
- आर. बी. भण्डारकर – डायरी 013 – ओम के रंग!
- आर. बी. भण्डारकर–डायरी 014 – स्वामी हरिदास महाराज
- कार्यक्रम रिपोर्ट
- शोध निबन्ध
- बाल साहित्य कविता
- स्मृति लेख
- किशोर साहित्य कहानी
- सांस्कृतिक कथा
- विडियो
-
- ऑडियो
-