सपनों में भी बसता मेरा वतन
डॉ. आर.बी. भण्डारकर"जहाँ हमारा ख़ून गिरा है, वह लद्दाख हमारा है।"
बगल के पलंग पर दादी के साथ बैठी पोती ने अपनी दादी को झिंझोड़ते हुए कहा, "दादी, बब्बा जी नींद में न जाने क्या बड़बड़ा रहे हैं!"
पत्नी ने बड़बड़ाते हुए मेरा हाथ खींचा, "हुँह, इन्हें तो सपने भी 370 के ही आते हैं।"
मैं उठकर बैठ गया। पोती अपनी किताब पढ़ रही थी, कुछ लिखती भी जा रही थी। सामने देखा दीवाल पर टँगी घड़ी 10 ही बजा रही थी।
"मिट्ठू, क्या मैं सो गया था?"
उत्तर पोती मिट्ठू के स्थान पर उनकी दादी ने दिया, "ना ना जनाब,आप कहाँ सोए थे ? सो तो हम लोग रहे थे।"
पोती ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी। उसकी दादी ने भी भी उसीका साथ दिया।
"अब तो आपका लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन गया है, अब सो जाओ," यह पत्नी जी के बोल थे।
"क्यों तुम्हें क्या तकलीफ़ हो गई?"
मिट्ठू बोली, "अरे बब्बा जी आप नींद में कह रहे थे- 'जहाँ हमारा ख़ून गिरा है, वह लद्दाख हमारा है'... इसलिए दादी कह रही हैं।"
मैंने पत्नी-उन्मुख होकर कहा, "नहीं, मंजुल बात 370 की नहीं है। मैं तो स्वप्न में क़रीब 57 साल पहले चला गया था।"
"क्या हुआ था 57 साल पहले? बब्बा जी बताओ न। प्लीज़ बब्बा जी बताओ न।"
"सुनो!
"मैं कक्षा छह में पढ़ता था उस समय। हमारे शासकीय माध्यमिक विद्यालय भवन में चारों तरफ़ पक्के अध्ययन कक्ष बने थे, बीच में कच्चा आँगन था। आँगन सदा साफ़-सुथरा रहता था। उसमें चारों ओर किनारों पर गेंदे की विभिन्न क़िस्मों के पौधे लगे थे, उनमें ख़ुशबूदार फूल लगे थे। स्कूल पहुँचने पर पहले "प्रार्थना" फिर पढ़ाई। अंत में छुट्टी होते ही सब विद्यार्थी अपने अपने घरों की ओर भागते।
"पढ़ाई के बीच में लगभग 1 बजे इंटरवल होता था। सभी छात्र इस दौरान इधर-उधर घूमते, मस्ती करते। एक दिन हेडमास्टर साहब ने आदेश निकाला, "आज से इंटरवल में सभी विद्यार्थी आँगन में बैठेंगे।"
"इंटरवल की घण्टी बजते ही सभी विद्यार्थी आँगन में टाट पट्टियों पर कक्षा बार दक्षिणाभिमुख बैठ गए। दक्षिण में सभी शिक्षक उत्तराभिमुख होकर बैठे। उनके सामने एक टेबल पर रेडियो रखा था। हेडमास्टर साहब ने फ़ुल वॉल्यूम पर रेडियो ऑन कर दिया; समाचार आने लगे।
"यह बात सन 62 की है। समाचारों से तो कुछ समझ में नहीं आया पर समाचार सुनने के बाद शिक्षकों ने आपस में जो बातें कीं उनसे पता चला कि चीन ने भारत पर आक्रमण किया है और सीमा पर भारी युद्ध चल रहा है।
"यह युद्ध 20 अक्टूबर 1962 से 21 नवम्बर 1962 तक चला। उस समय देश प्रेम का ऐसा जज़्बा कि पूरे युद्ध के दौरान अध्यापकगण प्रतिदिन इंटरवल में ख़ुद भी समाचार सुनते और विद्यार्थियों को भी सुनवाते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी विद्यार्थी शाला समय के बाद प्रतिदिन गाँव में रैली निकालते और तरह-तरह के देश-प्रेम और राष्ट्रीय एकता के नारे लगाते थे। उनमें एक नारा यह भी था जो कि तुम्हारे कहने के अनुसार मैं आज स्वप्न में बड़बड़ा रहा था।
"मिट्ठू जी मुझे याद है कि उस समय हमारे गाँव के आस-पास दूर-दूर तक राष्ट्रीय एकता का आलम यह था कि लोग जाति, धर्म, परस्पर के लड़ाई-झगड़े सब भूलकर देश के लिए मर-मिटने को तैयार हो उठे थे।"
मिट्ठू जी जो अब तक बब्बा जी टुकुर टुकुर मुँह ताक रही थी, कहने लगीं, "बब्बा जी बड़ी होकर मैं सेना में ही भर्ती होऊँगी।"
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