चुभन!

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

1.
सफल है कौन
झूठ को भी सच साबित कर सके
मुक़द्दर का सिकन्दर। 
 2.
सच या झूठ
हर बात कटे जब पूरी ताक़त से
आस्तीन का साँप। 
3.
ठोकरें जो मिली 
जिनकी किंचित भनक भी न लग सकी
फेरा न था। 
4.
ख़ंजर ले दौड़ा
सोचा न था सपने में भी कभी
पालने की सज़ा। 
5.
धर्म और अधर्म
अधर्म की कभी भी जीत नहीं होती
दिखती है केवल। 
6.
मिलते रहे संकेत
कभी समझा ही नहीं, काइयाँ न था 
समझ भी नहीं। 
7.
बड़े ही बड़े 
बड़े, बड़े, बड़े, बड़े, बड़े, नीम चढ़े
कभी न मिले। 

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