आर. बी. भण्डारकर – डायरी 012 – बाल हँस

01-02-2022

आर. बी. भण्डारकर – डायरी 012 – बाल हँस

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

14 जनवरी 2022 शुक्रवार

आज मकर संक्रांति है; ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आज अपराह्न 2 बजकर 43 मिनट पर सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। खगोलशास्त्र के अनुसार “सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, तब मकर संक्रांति होती है।” . . . यह अवसर हम लोगों के लिए एक पर्व होता है। 

धार्मिक मान्यता है कि संक्रांति का पुण्य काल सूर्य के मकर राशि में संक्रमण से 6 घंटे पहले से लेकर 6 घंटे बाद तक मान्य होता है। ऐसे में आज सूर्य देव की पूजा का शुभ समय सुबह 08 बजकर 43 मिनट से प्रारम्भ हो गया है। 

+ + + + + + + + + 

बीती रात को देर तक जागता रहा, कुछ आवश्यक कार्य था, इसलिए। 

आज सवेरे जैविक घड़ी ने तो समय पर ही जगा दिया पर बिस्तर देर से छोड़ सका। दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर बैठक में बैठा; अपने मोबाइल फ़ोन पर आज के कुछ समाचार सरसरी निगाह डालकर पढ़े . . .। समाचार पढ़ते हुए याद आया कि कुछ दिनों पहले मैंने दिसम्बर 2021 के अंतिम सप्ताह में ग्वालियर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले तानसेन समारोह के आग़ाज़ का समाचार पढ़ा था। 

मैंने स्वयं देखा है कि हर वर्ष तानसेन समारोह का शुभारंभ ढोली बुआ महाराज की संगीतमयी हरिकथा से ही होता है। 

ढोली बुआ महाराज! ग्वालियर के प्रसिद्ध ढोली बुआ महाराज मठ का सम्बन्ध नाथ सम्प्रदाय से है। नाथ सम्प्रदाय के आदि गुरु आदियोगी आदिनाथ सर्वेश्वर भगवान महादेव सदाशिव है। लगभग मध्य युग में अस्तित्व में आया यह नाथ पंथ हठयोग साधना पद्धति पर आधारित है। इस सम्प्रदाय में अनेक गुरु हुए हैं—8वीं, 9वीं सदी के प्रथम गुरु मच्छेंद्र नाथ योग सिद्ध, “तंत्र“ परंपराओं और अपरंपरागत प्रयोगों के लिए मशहूर माने जाते हैं। इनके बाद गुरु गोरक्षनाथ (गोरखनाथ) का नाम आता है। 10वीं–11वीं शताब्दी के यह संत गुरु सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इनसे पहले नाथ सम्प्रदाय समूचे देश में अस्त-व्यस्त रूप में बिखरा हुआ था। गुरु गोरखनाथ ने ही इस सम्प्रदाय का एकत्रीकरण किया। इन्हें मठवादी नाथ संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। इन्हें ही योग विद्याओं को व्यवस्थित करने, संगठन खड़ा करने वाला और हठ योग सम्बन्धी ग्रंथों का प्रथम रचनाकार माना जाता है। इस सम्प्रदाय के नौ नाथ गुरु 1. संत मच्छेन्द्र नाथ 2. संत गोरखनाथ 3. संत जालंधरनाथ 4. संत नागेश नाथ 5. संत भर्तृहरिनाथ 6. संत चर्पटीनाथ 7. संत कानीफ़नाथ 8. संत गहनीनाथ 9. संत रेवननाथ मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त गुरु चौरंगीनाथ, गुरु गोपीचन्दनाथ, गुरु रत्ननाथ, गुरु धर्मनाथ, गुरु मस्तनाथ आदि भी उल्लेखनीय संत हुए हैं। ध्यातव्य है कि भारत में नाथ सम्प्रदाय के गुरुओं, संतों को संन्यासी, योगी, जोगी, नाथ, अवधूत आदि नामों से जाना जाता है। 

ग्वालियर का ढोली बुआ महाराज मठ इसी नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर की परम्परा का है। संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के तेरहवीं सदी के एक महान संत थे। इनका जन्म सन्‌ 1275 ईसवी में महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में पैठण के पास गोदावरी नदी के किनारे आपेगाँव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। इनके पिता का नाम विट्ठल पंत एवं माता का नाम रुक्मिणी बाई था। संत ज्ञानेश्वर का दर्शन नाथ सम्प्रदाय, वारकरी, वैष्णव सम्प्रदाय आधारित था। ये संत नामदेव के समकालीन थे। इन्होंने उनके साथ पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान-भक्ति से परिचित कराते हुए समता, समभाव का उपदेश दिया। 

ध्यातव्य है कि ग्वालियर में भक्ति और ज्ञान की यह परम्परा महाराष्ट्र के पैठण से काशी विश्वनाथ होते हुए संत ज्ञानेश्वर परम्परा के संत महिपति नाथ द्वारा लाई गई। संत महिपति नाथ ने सन्‌ 1822 में ग्वालियर के प्रसिद्ध हठयोगी संत अण्णा महाराज के अनुरोध पर यहाँ के तत्कालीन नरेश महाराज दौलतराव को राजयोग की दीक्षा दी। यही वह समय था जब ग्वालियर में नाथ संप्रदाय की नींव पड़ी। 

संत महिपति नाथ के समाधिस्थ हो जाने पर उनकी स्मृति में संत काशीनाथ महाराज ने ग्वालियर में खासगी बाज़ार में उनकी समाधि के पास “ढोली बुआ मठ“ बनवाया। मठ के पास स्वर्ण रेखा नदी पर बना सेतु “ढोली बुआ पुल“ कहा जाता है। इस प्रकार ग्वालियर में संत महिपति नाथ “नाथ सम्प्रदाय“ और “ढोली बुआ मठ“ के आदि गुरु हैं। ग्वालियर में ढोली बुआ परम्परा में संत महिपति नाथ के बाद संत नारायण नाथ, संत निर्मल नाथ, संत अमर नाथ, संत काशी नाथ, संत भोलेनाथ, संत दाजीनाथ, संत आपानाथ, संत लक्ष्मण नाथ, संत गंगाधर नाथ, संत बालकृष्ण नाथ, संत गोविंद नाथ, संत दत्तात्रय नाथ, संत रंगनाथ, संत वासुदेव नाथ, संत श्रीकांत नाथ हुए। मठ में इन सब संतों की पक्की समाधियाँ बनी हुई हैं। ढोली बुआ महाराज मठ शैवमत शाखा का होने के कारण मठ के ऊपरी भाग में शिवलिंग स्थापित है। इसी मठ में औलिया प्रकृति के संत महिमति नाथ की गीत रचनाओं की हस्तलिखित पांडुलिपियाँ संरक्षित हैं। 

ढोली बुआ पंथ के संत लोक जीवन में ज्ञान की अपेक्षा भक्ति और कर्म के सिद्धान्त को अधिक महत्त्व देते हैं और नाम संकीर्तन की महिमा का गायन करते हैं। ढोली बुआ पंथ में सहज साधना, शक्तिपात दीक्षा, मधुकरी याचना और संगीतमय हरिकथा का विशेष महत्त्व है। 

पंथ का नाम “ढोली बुआ“ पड़ने का कारण पूर्णतः आध्यात्मिक है। यह कहा जाता है कि जब संत शिवदीन नाथ को अपने गुरु संत केशरीनाथ में ईश्वर का साक्षात्कार हुआ तब उन्होंने इस अनुभव की सूचना जन सामान्य को ढोल बजाकर दी थी। तभी से इन संतों में ढोल बजाकर सन्‌ देश प्रसारित करने और ढोल बजाकर ही मधुकरी याचना करने की परंपरा चली जो आज भी निरन्तर जारी है। संत शिवदीन नाथ के पुत्र और शिष्य संत नरहरि नाथ को दीक्षा और बाना (वस्त्राभूषण) के समय जो ढोल भेंट में दिया गया था वह आज भी ढोली बुआ मठ में सुरक्षित है। इसी ढोल के कारण इस पंथ का नामकरण “ढोली बुआ“ हुआ। इसी कारण से इस परंपरा के सभी संतों के नाम के साथ “ढोली बुआ“ शब्द जुड़ना शुरू हुआ। 

ढोली बुआ मठ के वर्तमान उत्तराधिकारी परम् संत श्रीकांत नाथ के यशस्वी पुत्र संत सच्चिदानंद ढोली बुआ और संत वासुदेव नाथ के तेजस्वी पुत्र संत बप्पा नाथ महाराज हैं। 

ढोली बुआ परंपरा के हरिकथा गायन में अभंग, लावणी, ध्रुपद, ठुमरी राग-रागिनियों और संगीत शैलियों का मंजुल समन्वय रहता है। इस हरिकथा की एक और बड़ी विशेषता सर्व धर्म समभाव है। 

+ + + + + + + +

मेरे 5 वर्षीय दौहित्र ओम भैया आ गए हैं। हमेशा ही तरह मुझसे सटकर बैठ गए हैं। उन्होंने कहा, “नाना जी मैंने ब्रश कर लिया है। ममा ने अभी मिल्क नहीं दिया, क्यों?” 

मैंने कहा, “आज मकर संक्रांति है। इसलिए पहले स्नान-ध्यान, पूजा फिर पेट-पूजा।”

“हा हा हा हा . . . नाना जी! पूजा तो मान जी (भगवान जी) की होती है, कहीं पेट की भी पूजा होती है? 

“हा हा हा हा . . . !”

“भैया जी, 9 बज गए हैं; स्नान-ध्यान का समय हो गया। आज तो चाय-नाश्ते से पहले भगवान भास्कर की पूजा करनी है। अग्नि में गुड़ और तिल का अर्पण भी करना है . . . आप यहीं बैठना मैं स्नान करके अभी आता हूँ।”

“आप बाथिंग बाथिंग (Bathing Bathing) करने जा रहे हैं नाना जी?” 

“जी हाँ।”

“नीचे के बाथ रूम में?” 

“हाँ जी . . . मेरा बाथ रूम तो वही है न!”

 (मैं मन ही मन सोचता हूँ कि स्नान की बात पर आज इतने प्रश्न क्यों कर रहे हैं, भैया जी?) 

मैं बाथ रूम (स्नान घर) में घुस ही रहा था कि ओम भैया जी मेरे पास आकर बोले, “नाना जी क्या आपको ख़ुश्बू आ रही है?” 

मैंने कहा, “ऊँ . . . हाँ, कुछ कुछ आ तो रही है। क्या किया है आपने?” 

ओम भैया हँसते हुए बोले, “मैंने कुछ नहीं किया . . आप उधर तो देखो . . .

“वो देखो . . . . . . अरे इधर नहीं, उधर . . . ”

मैंने देखा कि बाथरूम के बाहर के वाश वेसिन के ऊपर शीशे पर एयर फ्रेशनर का एक पैकेट टँगा हुआ है। 

ओम भैया बोले, “हाँ, इसी की ख़ुश्बू आ रही है, नाना जी।”

“अच्छा जी, यह आपने लगाया है?” 

“मैंने नहीं, मेरी ममा ने लटकाया है यह पावर पैकेट (एयर फ्रेशनर) कल शाम को।”

 (अब मेरी समझ में आया कि मेरे बाथरूम में जाने से पहले भैया जी इतने प्रश्न क्यों कर रहे थे?) 

मेरी छोटी बिटिया, जो ओम भैया जी की बातें सुन रही थी, हँसते हुए बोली, “हाँ, तो भैया, सीधे सीधे बताओ न कि नाना जी यह एयर फ्रेशनर मेरी ममा ने लगाया है . . . ख़ुश्बू आ रही हैsss नाना जीsss . . . यह डायलॉग क्यों सुना रहे हो।”

ओम भैया जी ही ही ही ही करके हँसने लगते हैं। 

छोटी बिटिया हँसते हुए बोली, “पापा जी कल दीदी ने जब से यह एयर फ्रेशनर लगाया है तब से यह इसी तरह बार-बार बता रहा है—मुझे भी, मोम को भी।”

ओम भैया झेंपते से पर हँसते हुए मेरे पैरों में लिपट जाते हैं। 

मैं सोचता हूँ कितनी अद्भुत मेधा होती है बच्चों में, अपनी बात रखने की। 

+ + + + + + + + 

स्नान के बाद पूजा। फिर मकर संक्रांति पूजा, फिर वही रोज़ की दिनचर्या। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
कविता
चिन्तन
कहानी
लघुकथा
कविता - क्षणिका
बच्चों के मुख से
डायरी
कार्यक्रम रिपोर्ट
शोध निबन्ध
बाल साहित्य कविता
स्मृति लेख
किशोर साहित्य कहानी
सांस्कृतिक कथा
विडियो
ऑडियो