नौतपा
डॉ. आर.बी. भण्डारकर
ब्रह्मांड सृजनहार की हर गतिविधि सोद्देश्य होती है, तार्किक होती है। अब मौसम के संदर्भ में नौतपा को ही ले लें। इस वर्ष 25मई 2024 से 2 जून 2024 तक था।
नौतपा तब लगता है जब पूरे उत्तर भारत में प्रायः खेत ख़ाली होते हैं, कृषि कार्य लगभग विरमित होते हैं और जनमानस भी प्रायः आराम की मुद्रा में होता है।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य रोहणी नक्षत्र में प्रवेश करता है और 9 दिनों तक रहता है तो इसे नौतपा की अवधि कहते हैं। आमतौर यह अवधि मई के अंत से लेकर जून के पहले सप्ताह के मध्य पड़ती है।
हमारे देश कृषक भाइयों व कृषि कार्यों से जुड़े लोगों को नौतपा का बेसब्री से इंतज़ार रहता है क्योंकि इसका कृषि कार्यों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। नौतपा में सूर्य से निकलने वाली तेज़ किरणों से धरती तपने लगती है, माना यह जाता है कि नौतपा जितना अधिक तपेगा तो बारिश भी उतनी ही अच्छी होगी।
वास्तव में नौतपा की उपयोगिता किसानों के साथ हम सभी के लिए और अन्य जीव जंतुओं के लिए भी है। इस सम्बन्ध में एक विद्वान का यह कथन ध्यातव्य है—
“दो मूसा दो कातरा, दो टीड़ी दो ताप।
दो की यादी जल हरै, दो विश्वर दो वाय॥”
कहीं कहीं यह कथन इस प्रकार भी मिलता है—
“दोए मूसा, दोए कातरा,
दोए तिड्डी, दोए ताव।
दोए रा बादी जळ हरै,
दोए बिसर, दोए बाव॥”
आशय यह है कि नौतपा के पहले दो दिन लू न चली तो चूहे बहुत हो जाएँगे, अगले दिन से दो दिन न चली तो कातरा (फसल को नुक़्सान न पहुँचाने वाले कीट) नष्ट नहीं होंगे, तीसरे दिन से दो दिन लू न चली तो टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे, चौथे दिन से दो दिन मौसम नहीं तपा तो बुख़ार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे, इसके बाद दो दिन लू न चली तो विश्वर यानी साँप-बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जाएँगे, आख़िरी दो दिन नहीं चली तो आँधियाँ अधिक चलेंगी, जो फ़सलों को चौपट कर देंगी।
आशय यह कि भले ही हमें नौतपा से तकलीफ़ होती है। हीट-स्ट्रोक या लू लगने का भय रहता है पर इन दिनों मौसम का तपना निश्चित रूप से मानव व अन्य प्राणियों के लिए उपयोगी है। हमें चाहिए कि हमें प्रकृति को न कोस कर, लू और हीट स्ट्रोक से अपने और अन्य प्राणियों के लिए बचाव के लिए सबसे पहले तात्कालिक उपाय करने चाहिएँ। जैसे व्यक्ति हवादार वस्त्राभूषण धारण करें, पर्याप्त पेय पदार्थ लें। पशु-पक्षियों के लिए छायादार शेड बनाएँ, उनके लिए पेयजल की व्यवस्था करें। दीर्घकालिक उपायों में यह कि अपने स्तर पर कार्बन का कम से कम उत्सर्जन होने दें, अपने आसपास वृक्षारोपण करना, जल संग्रह के लिए तालाब आदि का निर्माण करना हितकर है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जल जीवन है, इसका संरक्षण करें, व्यर्थ न बहने दें साथ ही इसके अपव्यय और दुरुपयोग रोकने के सभी सम्भव प्रयत्न करने चाहिए।
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