आर. बी. भण्डारकर – डायरी 013 – ओम के रंग!

15-02-2022

आर. बी. भण्डारकर – डायरी 013 – ओम के रंग!

डॉ. आर.बी. भण्डारकर (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

दिनांक  15 जनवरी 2022

रोज़ के समय जागा। दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर कुछ लिखने बैठा। . . . अभी कुछ समय पहले ग्वालियर में 25 से 30 दिसम्बर 2021 तक आयोजित होने वाले तानसेन समारोह के समाचार पढ़े थे। 

तानसेन! संगीत जगत की अविस्मरणीय शख़्सियत। संगीत के क्षेत्र में तानसेन का नाम विश्व विख्यात है। वे संगीत सम्राट हैं। उन्हें शास्त्रीय संगीत के निर्माण का श्रेय दिया जाता है। ऐसे महान संगीतज्ञ तानसेन का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर ज़िले के बेहट ग्राम में सन्‌ 1506 में पं. मुकुंद मिश्र के घर हुआ। उनका नाम रामतनु रखा गया पर उन्हें प्यार से तन्ना कह कर पुकारा जाता था। मुकुंद मिश्रा एक सम्पन्न व्यक्ति थे और प्रसिद्ध कवि भी थे। 

कहा जाता है कि लगभग 5 वर्ष की उम्र तक तन्ना स्वर-विहीन रहे पर बाद में जब वे पशु-चारण के लिए बीहड़ में जाने लगे तो पशु पक्षियों की आवाज़ की आवाज़ से आकर्षित होकर उन की नक़ल करने लगे। . . .  मैंने स्वयं देखा, सुना है कि पशु चराते हुए चरवाहे बड़े सुरीले (या ग़ैर सुरीले स्वर में भी) स्वर में तरह तरह के पारंपरिक (कभी कभी स्व निर्मित भी) लोक गीत गाते हैं। तन्ना में यहीं से संगीत-प्रेम जागा। मान्यता है कि तानसेन एक बार एक बाघ की आवाज़ की नक़ल कर रहे थे उसी समय उन्हें तब के प्रसिद्ध संत, संगीतकार और कवि स्वामी हरिदास ने देख लिया; उन्होंने एक पल में ही तानसेन की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें अपने शिष्य बना लिया। प्रारंभ में तानसेन ने स्वामी हरिदास के सान्निध्य में वृन्दावन में संगीत की शिक्षा ग्रहण की; विशेष रूप से उन्होंने ध्रुपद का ज्ञान अर्जित किया। तानसेन ने स्वामी हरिदास से केवल उनकी ध्रुपद कला ही नहीं सीखी बल्कि स्थानीय भाषा में उनकी संगीत रचना भी सीखी। मान्यता है कि उन्होंने कुछ समय तक राजा मानसिंह की विधवा पत्नी मृगनयनी से भी संगीत की शिक्षा प्राप्त की। 

तानसेन ने सूफ़ी संत मुहम्मद गौस से भी संगीत की शिक्षा ली पर यह शिक्षा लेने वे उनके पास कैसे पहुँचे, इस सम्बन्ध में काफ़ी मतांतर है। कुछ का कहना है कि स्वयं स्वामी हरिदास महाराज ने उन्हें संगीत की शिक्षा के लिए उनके पास भेजा था जबकि कुछ का मानना है कि अपने प्रारंभ काल में तानसेन विभिन्न संगीतादि उत्सवों में शिरकत करते थे, यहीं किसी उत्सव में उन्हें मोहम्मद गौस का सान्निध्य मिला, तब उन्होंने उनसे संगीत की शिक्षा ग्रहण की। ऐसा भी कहा जाता है कि जब तानसेन के पिता की मृत्यु हो गई, तो वे काफ़ी उदास रहने लगे और बेहट में ही शिव मंदिर में संगीत साधना करके समय बिताने लगे। इसी दौर में एक समय उनकी मुलाक़ात महान सूफी संत मोहम्मद गौस से हुई। तानसेन के अशांत मन पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा। तत्पश्चात तानसेन ने मोहम्मद गौस से लंबे समय तक संगीत की शिक्षा ग्रहण की। कहा जाता है कि तभी तानसेन ने मोहम्मद गौस को अपना गुरु मान लिया था। 

समय के साथ तानसेन को संगीत में अद्भुत सफलता मिलती गयी। इनके संगीत से प्रभावित होकर तत्कालीन रीवा-नरेश ने इन्हें अपने दरबार का मुख्य गायक नियुक्त किया। एक बार रीवा-नरेश के यहाँ अकबर को तानसेन का संगीत सुनने का अवसर मिला। वह इनके संगीत को सुनकर भाव-विभोर हो गया, तब उसने रीवा-नरेश से आग्रह कर तानसेन को अपने दरबार में बुला लिया। बाद में इनके कालजयी संगीत से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें अपने नवरत्नों में स्थान दिया। 

तानसेन के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इनके गायन के समय विभिन्न राग-रागिनियाँ साक्षात् प्रकट हो जाती थी। यह भी प्रचलित है कि जब यह दीपक राग गाते थे, तो दीपक अपने आप जल उठते थे, जबकि जब ये राग मल्हार गाते थे, तो बेमौसम भी पानी बरसने लगता था। 

महान संगीतज्ञ तानसेन उच्चकोटि के गायक तो थे ही वे निष्णात वादक भी थे। वे एक सफल रचनाकार भी थे। उन्होंने कई हिन्दू पौराणिक कहानियों पर आधारित संगीत रचनाएँ की; इनमें उन्होंने भगवान गणेश, शंकर और विष्णु की महिमा और प्रशंसा का वर्णन किया है। उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपनी समस्त रचनायें ध्रुपद शैली में ही कीं। ’राग माला’ और ’संगीत सार’ उनकी ख्यात रचनाएँ हैं। 

इनके अतिरिक्त तानसेन ने कई ध्रपद रचे, उनके राग भैरव, मल्हार, रागेश्वरी, दरबारी रोडी, दरबारी कानाडा, सारंग, जैसे कई राग भी अनन्य हैं। संगीत की ध्रुपद शैली तानसेन की ही देन मानी जाती है। निस्संदेह संगीत के विकास में उनका अपूर्व योगदान है। इसलिए उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का जनक भी माना जाता है। 

तानसेन की मृत्यु 26 अप्रैल 1586 को आगरा में हुई; पर उनकी मंशा के अनुसार उन्हें उनके गुरु मोहम्मद गौस के मक़बरे के पास ग्वालियर में दफनाया गया। यहाँ आज भी मोहम्मद गौस और तानसेन की समाधि बनी हुई है। तानसेन के गायन की उच्च स्थिति को समझने के लिए रहीम जी का यह दोहा ध्यातव्य है:

विधिना यह जिय जानि के शेषहि दिये न कान। 
धरा मेरु सब डोलि हैं, सुनि तानसेन की तान। 

 इन रामतनु को नमन, जो अपनी प्रतिभा और अपने उद्यम के बल से तानसेन बने। 

 

+ + + + + + + + 

 

लो, ओम भैया आ गए। 

ओम भैया मेरे पाँच वर्षीय दौहित्र हैं। जागने के बाद टिप-टॉप होकर, प्रथम तल के अपने शयन कक्ष से सीधे मेरे पास आते हैं। अक़्सर 9 बजे तक आ जाते हैं, पर आज 11 बज रहे हैं। 

आते ही , “गुड मॉर्निंग (Good Morning) नाना जी।”

“गुड मॉर्निंग (Good Morning) भैया जी।”

अब भैया जी मेरी बग़ल में मुझसे बिल्कुल सटकर बैठ जाते हैं। 

“आज देर क्यों हो गई?” 

“आज सटरडे (Saturday) है न! ममा की छुट्टी है। इसलिए ममा के साथ खेलने लगा था।”

“ओ के (Okay) “

ओम भैया जी बोलना शुरू करते हैं तो बोलते ही रहते हैं . . . अपनी तरह तरह की भावनाएँ व्यक्त करते हैं . . . ढेरों प्रश्न करते हैं। 

आज भी शुरू हो गए, ”नाना जी आप क्या लिख रहे थे?” 

“अपनी डायरी।”

“डायरी? यह क्या होता है? आपको पोयम (poem) लिखनी चाहिए; मेरी बुक में बहुत पोएम (poem) है।”

“ठीक है बाबा; अब पोएम ही लिखूँगा।”

“बाबा! मैं तो ओम भैया हूँ। ही ही ही ही . . . ”

मैं भी हँसने लगता हूँ। 

“नाना जी क्या ज़्यादा बोलने से माउथ (Mouth) थक जाता है? 

मैंने हँसते हुए कहा, “बिल्कुल . . . . . . क्यों?” 

“एक बार मेरा माउथ (Mouth) भी थक गया था।”

“आप ज़्यादा बोलते रहे होंगे।”

“ नहींं।”

“तो फिर आपका माऊथ कैसे थक गया?” 

“मेरा और छोटी दीदू का कम्पटीशन (Competition) था . . . कौन देर तक बोल पाता है—’गुलगुले सुपर; सबसे ऊपर। गुलगुले सुपर; सबसे ऊपर। गुलगुले सुपर; सबसे ऊपर।’ . . . ”

ओम भैया जी के इस भोलेपन पर मेरी हँसी छूट पड़ती है। 

पत्नी जी यह सुन रही थीं। आती हैं। यह कहकर ओम को पकड़ ले जाती हैं, “चल नटखट . . . चल दूध पी ले।”

मैं मुश्किल से हँसी रोक पाता हूँ। 

ठीक है . . . अब फिर कभी।

1 टिप्पणियाँ

  • एक साहब ने मुझे बताया है कि "गुलगुले सुपर,सबसे ऊपर" खेल को कुछ बच्चे "बुलबुले सुपर सबसे ऊपर"बोल कर खेलते हैं। चार छै बच्चे एकत्रित होकर एक पाइप/स्ट्रॉ से साबुन के बुलबुले बना कर उड़ाते हैं फिर कहते हैं-बुलबुले सुपर सबसे ऊपर।आशय है कि उनके बुलबुले "सुपर" हैं और सबसे ऊपर हैं। सम्भव है कि ओम भैया जी ने बुलबुले को गुलगुले समझ लिया हो।ओम भैया को गुलगुले बहुत पसंद हैं।मुझे भी।मेरी पत्नी जी बहुत अच्छे एकदम सुपर गुलगुले बनाती हैं।

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