सिर्फ़ देता है साथ संगदिल 

15-03-2021

सिर्फ़ देता है साथ संगदिल 

प्रवीण कुमार शर्मा  (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मंज़िल की तलाश
यूँ ही ख़त्म नहीं हो जाती।
झोली ज़िन्दगी की मोतियों से सहज
यूँ ही नहीं भर जाती।
झंझावात में ज़िन्दगी की नाव
यूँ ही नहीं सँभल जाती।
प्यास लगना स्वाभाविकता है –
पर बिना प्रयास किये
दूर से ही प्यास
यूँ ही नहीं बुझ जाती।
कोशिश करने वालों को
लक्ष्य भी सहज है।
किन्तु राहगीरों की आँखों में
पीड़ा का जल है
जो धुँध हुए
सपनों को करता उज्ज्वल है।
काँटों पर चलने से ही
लगती है हाथ मंज़िल।
न कोई साथी न कारवां
सिर्फ़ देता है साथ संगदिल॥

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